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२-चतुर्विशतिस्तवाध्ययनम् :: ४-चतुर्विंशतिस्तवनियुक्तिः [१०५
सावज्जजोगविरमो तिविह तिविहेण वोसिरिअ पावं । सामाइअमाईए एसोऽणुगमो परिसमत्तो ॥ ६५ ॥ विज्जाचरणनएसु सेससमोप्रारणं तु कायव्वं ।
सामाइअनिज्जुत्ती सुभासिनत्था परिसमत्ता ।। ६६ ।। 5 नायंमि गिहिप्रवे प्रगिहिमवंमि चेव अत्थंमि ।
जइअव्वमेव इअ जो उवएसो सो नओ नामं ॥ ६७ ।। सम्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता । तं सवनयविसुद्धं जं चरणगुणट्ठिओ साहू ॥६८ ।।
॥ इति सामायिकनिकयुक्तिः ।। ५॥ ॥ इति प्रथम सामायिकाध्ययनम् ।। १ ।।
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॥२॥ अथ चतुर्विशतिस्तवाख्यं द्वितीयमध्ययनम् ।।
॥६॥ अथ चतुर्विशतिस्तवनियुक्तिः ॥
चउवीस स्थयस्स उ णिक्खेवो होइ णामणिप्फण्णो ।
चउवीसइस्स छक्को थयस्स उ चउविहो होइ ॥ ६६ ।। 15 लोगस्सुजोयगरे धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली ॥१॥ सूत्रम् ।। नामं १ ठवणा २ दविए ३ खित्ते ४ काले ५ भवे अ६
भावे प्र७। 20 पज्जवलोगे अ ८ तहा अट्टविहो लोगणिक्लेवो ॥ १०७० ।।
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