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(३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ]
मालाभिमुहं दठूण प्रगारि निग्गओ तओ साहू । तच्चनिय आगमणं पुच्छा य अदिन्नदाणति ।। ५६ ।। मालंमि कुडे मोयग सुगंध अहि पविसणं करे डक्का ।
अन्नदिण साहु आगम निद्दय कहणा य संबोही ।। ३६० ॥ 5 आसंदि-पीढमंचक-जंतोडुखल पडंत उभयवहे ।
वोच्छेय-पनोसाई उड्डाह-मनाणिवाओ य ॥६१ ।। एमेव य उक्कोसे वारण निस्सेणि गुग्विणीपडणं । गभित्थि कुच्छिफोडण पुरो मरणं कहण बोही ।। ६२ ।।
उड्डमहे तिरियपि य प्रहवा मालोहडं भवे तिविहं । 10 उड्ड य महोयरणं भणियं कुभाइसू उभयं ।। ६३ ।।
दद्दर-सिल-सोवाणे पुश्वारूढे अणुच्च मुक्खित्ते । मालोहडं न होई सेसं मालोहडं होइ ।। ६४ ।। तिरियायय उज्जुगएण गिण्हई जं करेण पासंतो।
एयमणुच्चुक्खित्तं उच्चुक्खित्तं भवे सेसं ॥६५ ।। 13 प्रच्छिज्जपि य तिविहं पभू य सामी य तेणए चेव ।
अच्छिज्जं पडिकुटुं समणाण न कप्पए घेत्तु ।। ६६ ।। गोवालए य भयएऽखरए पुत्ते य धूय सुण्हाए । अचियत्त-संखडाई केइ पओसं जहा गोवो ।। ६७ ।।
गोवपओ अच्छेत्तु दिन्नं तु जइस्स भइदिणे पहुणा। 20 पयभागणं द? खिसइ भोई स्वे चेडा ॥६८।।
पडियरण-पत्रोसेणं भावं नाउं जइरस आलावो । तन्निब्बंधा गहियं हंदि स मुक्कोऽसि मा बीयं ।। ६९ ॥
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