SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९२ ] [ नियुक्तिसंग्रहः :: (३) श्रीपिण्डनियुक्तिः रस कक्कपिंडगुला मच्छंडिय-खंडसक्कराणं च । होइ परंपरठबरणा अन्नत्थ व जुज्जए जत्थ ॥८३ ।। भिक्खागाही एगत्थ कुणइ बिइओ उ दोसु उवओगं । तेण परं उक्खित्ता पाहुडिया होइ ठवणा उ ।। ८४ ॥ 5 पाहुडियावि हु दुविहा बायर सुहुमा य होइ नायब्धा । प्रोसक्करणमुस्सक्कण कम्बट्ठीए समोस रणे ।। ८५ ।। मा ताव झंख पुत्तय ! परिवाडीए इहेहि सो साहू । एयस्स उठ्ठिया ते दाहं सोउं विवज्जेइ ।। ८६ ।। अहवा-अंगुलियाए घेत्तु कड्डइ कप्पो घरं जत्तो। 10 किति कहिए न गच्छइ पाहुडिया एस सुहमा उ ।। ८७ ।। पुत्तस्स विवाहदिणं प्रोसरणे अइच्छिए मुणिय सड्ढी । ओसक्कतोसरणे संखडि-पाहेणग दवट्ठा ॥८८ ।। अप्पत्मि य ठवियं ओसरणे होहिइत्ति उस्सकणं । तं पागडमियरं वा करेइ उज्जू अणंज्जू वा ।। ८६ ।। 15 मंगल हेउं पुन्नट्ठया व ओसक्कियं दुहा पगयं । उस्सक्कियंपि किति य पुट्ठ सिट्ठ विवज्जति ।। २६० ।। पाहुडिभत्तं भुजइ न पडिक्कमए अ तस्स ठाणस्स। एमेव अडइ बोडो लुक्कविलुक्को जह कवोडो ।। ६१ ।। लोयविरलुत्तमंगं तवोकिसं जल्लखउरियसरीरं। 20 जुगमेत्तांतर दिदि अतुरियचवलं सगिहमितं ।। ६२ ॥ दळूण य अणगारं सड्डी संवेगमागया काई । विपुलऽन्नपाण घेत्तूण निग्गया निग्गनो सोऽवि ॥ ९३ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy