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(४) श्रीदशवकालिकनियुक्तिः ]
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जो तेसु धम्मसद्दो सो उवयारेण निच्छएण इहं। जह सोहसह. सोहे पाहण्णुवयारओऽण्णस्थ ॥९५॥ जह भमरोत्ति य एत्थं दिढतो होइ आहरणदेसे।
चंदमुहि दारिगेयं सोमत्तवहारण ण सेसं ॥९६ ॥ 5 एवं भमराहरणे अणिययवित्तित्तणं न सेसाणं ।
गहणं दिटुंतविसुद्धि सुत्त भणिया इमा चऽन्ना ।। ६७ ।। एस्थ य मणिज्ज कोई समणाणे कोरए सुविहियाणं । पागोवजीविणो ति य लिप्पंतारंभवोसेणं ।। ९८॥
वासइ न तणस्स कए न तणं बड्डइ कए मयकुलार्ण । 10 न य रुक्खा सयसाला फुल्लन्ति कए महुयराणं ।। ९९॥
अग्गिम्मि हवी हयइ आइच्चो तेण पोरिणमओ संतो। वरिसइ पयाहियाए तेजोसहिओ परोहंति ॥ १० ॥ कि दुरिभक्खं जायइ ? जइ एवं अह भवे दुरिट्ठतु।
कि जायइ सवस्था दुग्भिक्खं अह भवे इंदो? ॥१०१ ।। 15 वासइ तो कि विग्धं निग्घायाहिं जायए तस्स ।
अह वासइ उउसमए न वासई तो सणट्टाए ।। १०२ ।। कि च दुमा पुप्फति भमराणं कारणा अहासमयं । मा भमरमहुयरिगणा किलामएज्जा प्रणाहारा ।। १०३ ।। कस्सइ बुद्धी एसा वित्ती उवकप्पिया पयावरणा। सत्तार्ण तेण दुमा पुष्फति महुयरिगट्ठा ॥१०४ ।। तं न भवह जेण दुमा नामागोयस्स पुग्धविहियस्स । उदएणं पुप्फफलं निवत्तयंती इमं चनं ॥ १०५ ॥
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