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(३) श्रीपिण्डनियुक्तिः ]
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निग्गम देउल दाणं दियाइ सन्नाइ निग्गए दाणं। सिट्ठमि सेसगमणं दितऽन्ने वारयंतऽन्ने ।। ३८ ।। भुजण अजीरपुरिमडगाइ अच्छंति भुत्तसेसं वा।
आगमनिसोहिगाई न भुजई सावगासंका ।। ६६ ।। . 5 उक्खित्तं निक्खिप्पइ आसगयं मल्लगंमि पासगए।
खामित्तु गया सड्ढा तेऽवि य सुद्धा असढभावा ।। ३४० ।। लद्धं पहेणगं मे प्रमुगत्यगयाएँ संखडीए वा। वंदणगठ्ठपविट्ठा देइ तयं पठ्ठिय नियत्ता ॥ ४१ ।।
नीयं पहेणगं मे नियगाणं निच्छियं व तं तेहि। 10 सागारि सयज्झियं वा पडिकुट्ठा संखडे रुट्ठा ।। ४२ ।।
एयं तु अणाइन्नं दुविहंपि य आहडं समक्खायं । पाइन्नपि य दुविहं देसे तह देसदेसे अ ।। ४३ ।। हत्थसयं खलु देसो पारेणं होइ देसदेसो य । आइन्नंमि उ. तिगिहा ते चिय उवओगपुवागा ।। ४४ ।। परिवेसण-पंतीए दूर पवेसो य घंघसालगिहे । हत्थसया आइन्नं गहणं परमो उ पडिकुट्ट ॥ ४५ ।। (होइ पुण देसदेसो अंतो गिह सा न दीसए जत्थ । उक्खेवाई तत्थ उ सोसाई देइ उवनोगं ॥ प्र०) उक्कोस मज्झिम जहन्नगं च तिविहं तु होइ आइन्न । करपरियत्त जहन्नं सयमुक्कोसं मज्झिमं सेसं ।। ४६ ॥ पिहिउभिन्न-कवाडे फासुय अप्फासुए य बोद्धध्वे । अप्फासु पुढविमाई फासुय छगणाइदद्दरए । ४७ ।।
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