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________________ १४० ] - [ नियुक्तिसंग्रहः :: (१) आवश्यकनियुक्तिः सोलसएहि, सत्तरसविहे संजमे, अट्ठारस विहे अबंमे, एगू. णवीसाए नायज्झयणेहि, वीसाए असमाहिठाणेहि ।। सूत्रम् ।। मासाई सत्ता पढमाबिति (बियतय) सत्त[सत्त] राइदिणा। अहराई: एगराई भिक्खूपडिमाण बारसगं ॥ १ ॥ अट्ठाणट्ठा हिंसाऽकम्हा दिट्टी य मोसऽदिण्णे य । अब्भत्थमाणमेत्ते मायालोहेरियावहिया ॥१॥ एगिदियसुहुमियरा सण्णियर पणिदिया य सबोतिचऊ। पज्जत्तापज्जत्ताभएणं चौहसग्गामा ॥१॥ मिच्छट्ठिी सासायणे य तह सम्ममिच्छदिट्ठो य । अविरयसम्मद्दिट्ठी विरयाविरए पमत्ते य ॥१॥ तत्तो य अप्पमत्तो नियट्टिअनियट्टिबायरे सुहुमे । उवसंतखीण मोहे होइ सजोगी अजोगी य ॥२॥ अंबे अबरिसी चेव, सामे अ सबले इय । रुद्दोवरुद्दकाले य, महाकालेत्ति आवरे ॥१॥ असिपत्ते घणं कुंभे, वाल वेयरणी इय । 15 खरस्सरे महाघोसे, एए पन्नरसाहिया ॥२॥ समयो वेयालीयं उवसग्गपरिण्ण थीपरिणा य । निरय विभत्ती-वीरत्थओ य कुसीलाण परिहासा ॥१॥ वोरियधम्मसमाही मग्गसमोसरणं अहतहं गंथो । जमईयं तह गाहासोलसमं होइ अज्झयणं ।।२।। 20 पुढविदगअगणिमारुय-वणस्सइबितिचउपणिदिअजीवा । पेहुप्पेहपमज्जण परिठ्ठवण मगोवईकाए ॥१॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002598
Book TitleNiryukti Sangraha
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages624
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Spiritual
File Size19 MB
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