Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (44 ) कलिकालसर्वज्ञकम्प जङ्गमयुगप्रधान जैनाचार्य श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरचरणकमलेभ्यो नमः / श्रीश्वेताम्बरजैन-त्रिस्तुतिक सम्प्रदाय वाले प्रोसवाल व पोरवाडों का धर्मध्यान करने का 'श्रीराजेन्द्रजैन भवन' सं० 1925 . दूसरा मन्दिर अष्टापदजी का है, इसमें वर्तमान चोवीस तीर्थकरों की अष्टापदगिरि के समान भव्य मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसके मूल-द्वार के दोनों बंगलो के ताक में, एक में श्रीगौतमस्वामी और दूसरे में महाराज श्रीराजेन्द्रसूरीश्वरजी की हुबोहुब मूर्ति विराजमान है। इस मन्दिर के प्रवेश-द्वार के ऊपर एक शिला-लेख लगा है, जिसमें लिखा है कि " श्रीसौधर्मबृहत्तपागच्छीय बीसा-पोरवाड खजानची शेठ दोलतरामजी चुन्नीलालजीने पन्नालालजी, लालचंद, चंपालाल, चांदमल, रतनलाल, मथुरालाल. माधोलाल आदि परिवार से श्रीअष्टापदजी का मंदिर बनवा के, उस में संवत् 1961 माघसुदि 5 गुरुवार के रोज परमयोगिराज जंगमयुगप्रधान जैनाचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के कर-कमलों से अष्टाह्निक-महोत्सव पूर्वक चोवीस जिन-प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाञ्जनशलाका कराके, बिराजमान की / मु० राजगढ, (मालवा )" . इसके प्रवेश-द्वार के सामने ओसवालजैनों का श्रीयतीन्द्र