Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (114 ) 1237 तक के बने हुए हैं और वे नेढक, आनन्दक, पृथ्वीपाल, धीरक, लहरक, मानक; आदि महामात्यों के बनवाये हुए हैं। प्रत्येक हाथी पर विमलशाह और उनके वंशजों की मूर्तियाँ स्थापित हैं / इसीके वाम भाग पर एक छोटा आदिनाथ भगवान् का मन्दिर है / विमलशाह के मन्दिर का कुछ हिस्सा म्लेच्छोंने खण्डित कर दिया था / उसको महणसिंह के पुत्र लल्लने सुधराया ऐसा विविधतीर्थकल्प में लिखा है / इस मन्दिर के बगल में थोड़ी दूर श्रीनेथमनाथ भगवान् का दिव्य मन्दिर है, जो 'लूणगवसही' के नाम से प्रसिद्ध और महामात्य वस्तुपाल तेजपाल का बनवाया हुआ है / इसके चोतरफ़ 52 देवरियाँ हैं और मन्दिर के भीतरी मुख्य प्रवेशद्वार के दोनों बगल में उत्तम कारीगिरीवाला एक एक ताक है, जो देराणी जेठाणी के आलिये कहाते हैं। इन ताकों को तेजपालने अपनी दूसरी स्त्री सुहड़ा देवी के श्रेयो निमित्त बनवाये हैं। सुहड़ादेवी पाटण के रहनेवाले मोढ़जाति के ठक्कुर जाल्हण के पुत्र ठाकुर भासा की लड़की थी। इस मन्दिर में पिछली बगल में एक हस्तिशाला के अन्दर संगमर्मर को उत्तम कारीगिरी वाली एक ही पंक्ति में 10 हथनियाँ खड़ी हैं / हथनियों की पूर्व दीवार में 10 ताक हैं, जिनमें पुरुषों सहित 10 स्त्रियों की खड़ी मूर्तियाँ हैं और उन सब के हाथ में पुष्पों की मालाएँ हैं। इनमें प्रत्येक मूर्तियाँ पर पुरुष और स्त्रियों के नाम खुदे हैं / कहा जाता है कि यह स्मारकचिह्न वस्तुपाल तेजपाल के कुटुम्ब का है / मुसलमानों से तोड़े गये इस मन्दिर के हिस्से का