Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (141) नाथ भगवान की ढाई हाथ बडी सुन्दर मूर्ति स्थापित है / इस की अञ्जनशलाका सं० 1959 फाल्गुन वदि 5 गुरुवार के दिन अशुभ-लग्न में खरतरगच्छ के श्रीपूज्य जिनमुक्तिसूरिजीने की है / अशुभ मुहूर्त के कारण अञ्जनशलाका के महोत्सव समय में भी बहुत उपद्रव हुआ था और अब भी हर तीसरे वर्ष के इसके मेला पर कुछ न कुछ उपद्रव अवश्य ही हो जाता है / खराब मुहूर्त में प्रतिष्ठा, या अञ्जनशलाका करने, कराने से कितनी नुकशानी में उतरना पडता है. ? इसका ताजा दृष्टान्त इस मन्दिरगत मूर्ति की अञ्जनशलाका का ही समझना चाहिये / चौथा मन्दिर पूनमिया गच्छ के उपाश्रय के पीछे बना हुआ है, जो घर-देरासर और उसमें श्रीपार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति स्थापित है। पांचवां मन्दिर श्रीसौधर्मबृहत्तपागच्छीय बडी जैनधर्मशाला के ऊपर के होल में है / इसमें मूलनायक भगवान् श्रीशान्तिनाथ और उनके दोनों तरफ शान्तिनाथ आदिनाथस्वामी की सर्वधात की तीन मूर्तियाँ बिराजमान हैं। इनकी प्रतिष्ठा महाराज श्रीविजयराजेन्द्रसूरीश्वरजीने सं० 1959 माहवदि 1 बुधवार के दिन है / ये मूर्तियाँ तलावत गदैया जसा सुत सिरेमल के स्मरणार्थ श्राविका गंगा और धापूने स्थापन की हैं / और एक आरसपाषाण की सुन्दर छत्री ( देवरी ) में स्थापित हैं। ____इसी धर्मशाला के प्रवेशद्वार के दाहिने भाग पर कडोद (धार ) के रहने वाले खेताजी वरदाजी के सुपुत्र शेठ उदयचन्द्रजी पोरवाड़ का बनवाया हूआ मजबूत आरस-पाषाण का