Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 197 ) कर' पेटवाले सांपने निकल जाने के लिये आनाकानी की और फूफाटे करने शुरू किये / तब बाहरवाले सांपने जोर से कहा कि 'यदि इस करीरवृक्ष के पत्ते और उसके नीचे रहे पुष्प के रस को शामिल घोंटके और मीठे तेल में उवाल के राजा को पिला दिया जाय तो राजा के पेट का सांप मर जायगा और वह दस्तके साथ निकल जायगा।' इसके उत्तर में पेटवाले सांपने कहा कि 'अगर दरवाजे के पासवाले बिल में कल कलता हुआ तेल डाला जायगा, तो विलगत सांप मर जायगा और दरमें से अगणित धनराशि मिलेगी। राजा के पास में बैठे हुए कायस्थने दोनों सांपों की कही हुई सांप विनाशक तरकीब को अपनी नोटबूक में लिख ली और औषधी तैयार करके राजा को पिलाई जिससे गजा का शरीर तन्दुरस्त हो गया / बाद किसी अपराध के कारण राजाने कायस्थ को मरा डाला और उसकी नोटबुक के लिखे अनुसार दरवाजेवाले बिल में गर्म तेल डलाया, जिससे सांप मर गया और विल से अपरिमित धन निकला, इस द्रव्य से राजा जगसोमने सूर्य-मन्दिर तैयार कराया। इस मन्दिर के कतिपय सुरम्य सफेद पत्थर के स्तंभे शान्तिनाथ, सुपार्श्वनाथ के मन्दिर और सरकारी जूनी कचेरी में पड़े हुए हैं / शहर के पास एक जाकब ( यक्षकूप ) नामक तालाव है उसके उत्तर तट पर गजनीखान की कबर के पास एक खंडेहर है / इसमें एक थंभा है, जिस पर चाचिगदेव के समय का लेख है / उसमें थिरापद्रगच्छीय पूर्णचन्द्रसूरि का नाम और सं०