Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 200) सामनेवाले कमरे में यतीजी का खान, पान, आसन और शयन होता है। ___4 चौथा मन्दिर सेठों के वास में एक ऊंची खुरशी पर शिखरबद्ध बना हुआ है / इसमें सर्वधात की सवा हाथ बडी सुपार्श्वनाथ भगवान् की अति प्राचीन मूर्ति बिराजमान है, जो भीनमाल और नरतागाँव के बीच के खेत से प्रगट हुई थी। कहा जाता है कि जिस समय यह मूर्ति प्रगट हुई और इसकी खबर जालोर के मुसलमान राजा गजनीखान प्रथम को हुई, तब वह इस मूर्ति को सोनेकी समझ कर जालोर ले गया और सुनारों को बुला कर इस मूर्ति के हाथी, घोड़े तथा बैलों के गहने बनाने की आज्ञा दी / सुनारोंने मूर्ति को तोडने के लिये चोट लगाई, पर टांकियाँ टूट गई, किन्तु मूर्ति अंशमात्र भी टूटी नहीं, और उसी समय अगणित सांप विच्छु प्रगट हो गये जिनसे घबरा कर सुनार भग गये / . गजनीखानने सोचा कि यदि मूर्ति यहाँ रक्खी जायगी तो फिर कोई महान् उपद्रव खडा होगा ? इससे उसने पादरा गाँव के निवासी संघवी वरजिंग-महाजन को मूर्ति सोंप दी / उसने भीनमाल में नया मंदिर बनवा कर, उसमें इस मूर्ति को बिराजमान कर दी। विक्रम सं० 1746 के लगभग पं० शिवविजयजी के शिष्य कवि शीलविजय पंन्यास रचित तीर्थमाला में पश्चिमादीश के तीर्थ वर्णन में लिखा है कि-~