Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (219) रूप सरोवर ( तालाव ) जब तक विद्यमान (कायम) रहे, तब तक इस श्रीआदिनाथस्वामी के मन्दिर में यह मंडर वृद्धि को पाता रहे। श्री पूर्णभद्रसूरिजी की यह कृति ( प्रशस्ति रचना ) है। श्रीसंघ के लिये संपूर्ण कल्याण हो।" पृ० 178-80 . (21) 2- सं० 1221 में जावालीपुर ( जालोर ) कांचनगिरिगढ के ऊपर प्रभुश्रीहेमचन्द्रसूरि से प्रतिबोध पाये हुए गुजरात के राजा चौलुक्यवंशी महाराजाधिराज परमाईत श्रीकुमारपालदेवने श्रीकुँवरविहार नामक जिनालय बनवाया। यह शास्त्रोक्तविधि से पूजा विधि चालु रखने के लिये चन्द्रसूर्य की स्थिति पर्यन्त बृहद्गच्छीय वादीन्द्र श्रीदेवाचार्य के समुदाय को अर्पण किया गया। सं. 1242 में इस देश ( मारवाड) के अधिपति चाहुमान कुलतिलक श्रीसमरसिंहदेव की आज्ञा से भां० ( भंडारी) पांसू के पुत्र भा० ( भांडागारी भंडारी) यशोवीरने इस मंदिर का उद्धार कराया / ..सं० 1252 ज्येष्ट सुदि 11 के दिन श्रीपार्श्वनाथ के मन्दिर में राजा की आज्ञा से श्रीदेवाचार्य के शिष्य श्रीपूर्णदेवाचार्यने तोरणादि की प्रतिष्ठा कार्य करते हुए मूलशिखर पर स्वर्णमय धजादंड की स्थापना की। ............. ":.सं. 1268 दीवाली के हिन नवीन बने हुए प्रेक्षामंडप