Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 316
________________ ( 297 ) जुदी गिन कर अठारह की संख्या पूर्ण की है / चैत्यपरिपाटीस्तवन नीचे मुताबिक है होरी-सांवरो सुखदाई-देशीप्रभुजी से प्रीति लगाई, सुमति मोरी अति हरखाई / / टेर / / पास आस पूरे भविजन की, जीरावलो जग मांई / चिंतामणि चित चिंता चूरे, इन विच क्या है नवाई // 1 // शांतिजिनेश्वर मूर्ति मनोहर, जगगुरु पदवी पाई। नाभिनरेश्वर नंदन निरख्यो, मुगति बधुकी वधाई // 2 // गोडीपासे शंखेश्वर साहेब, कीर्ति जगमें गवाई। कुंथु कल्पतरु वीरजिनेश्वर, शीतल ऋषभ सवाई . // 3 // पद्मप्रंभ जिन सुमति सुहंकर, अजित चिंतामणि पाई। संभवे नेमिजिणंदँदयालु, ऋषभ श्रीवीर दुहाई // 4 // नगर सिरोही सुरपुरी मार्नु, जिनघर हार हीराई।। कांतिविजय प्रभु चरण कमल को, दर्शन जगत बढाई // 5 // ) विक्रम सं 1986 वैशाख शुद 15 मुनि यतीन्द्रविजय. मु० खुडाला (मारवाड)

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