Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ . (211) जैनधर्म अंगीकार किया वे श्रीमाल और पोरवाड जाति के म. हाजन कहलाये / भीनमाल की दशा बिगडे बाद यही, या इन्हों के वंशज हिन्दुस्थान के चारों और जाकर वस गये। कुलगुरु की स्थापना- . विक्रम सं० 775 में श्रीसोमप्रभाचार्य के उपदेश में माणराजाने सिद्धगिरि और गिरनारजी का संघ निकाला, जिसमें 7 हजार रथ, 125000 घोडे, 10011 हाथी, 7000 पालखी, 25000 ऊंट, 50000 बैल और 11000 गाड़ी आदि सामग्री थी। श्रीउदयप्रभसूरि, और सोमप्रभाचार्य आदि साधु साध्वी समुदाय भी संघ के साथ बहु संख्या में था / यात्रा करके संघ जब सकुशल वापिश लोट के भीनमाल आया, तब भाणराजा को संघवी पद का तिलक निकालने के निस्वत हकदारी का झगड़ा उठा / उदयप्रभपूरिने कहा-तिलक निकालने का हक हमारा है और सोमप्रभाचार्यने कहा कि हमारा है। इस झगड़ें को हमेश के लिये मिटा देने को वर्द्धमानपुर में चोरासी गच्छ के आचार्योंने सभा ( कान्फन्स ) भरके यह निर्णय किया कि कोई आचार्य किसीके श्रावक को उसके परंपरागत कुल. गुरु की आज्ञा विना संघवीपद का तिलक, व्रतोच्चार और दीक्षा आदि न करे / उसको हरएक कार्य अपने कुलगुरु के पास, या उनकी आज्ञा से करना चाहिये / यदि कुलगुरु दूर देश में हो तो उसको बुलाके, अथवा उसकी आज्ञा के आने बाद ही संघवीतिलक आदि कार्य करना कराना चाहिये / इस मत