Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (228) जिसको विक्रम सं० 101 में सोलखी परमार थिरपाल धरुने अपने नाम से वसाया था / कहा जाता है कि थिरपाल धरु की बहिन हरकुने घेरालीमडी के 75 फुट चौग्स मेदान में 1444 स्तंभ और 52 जिनालय विशाल जिनमंदिर बनवाया था, जो इस समय भूमिशायी है / यह विशाल मन्दिर किस समय भूमिशायी हुआ ? यह इतिहास अभी अंधारे में ही है। मालूम होता है कि वाव में जो यहाँ से गई धातु की अजितनाथ प्रतिमा है, वह इसी विशाल मंदिर की हो / इस स्थान की जमीन खोदते हुए इस रमणीय जिनमंदिर के पत्थर, ईंट आदि निकलते हैं, जिससे यहाँ विशाल जिन-मन्दिर होने का अनुमान किया जा सकता है / थिरपाल धरु के वंशजोने यहाँ विक्रम की 7 वीं सदी तक राज्य किया है / अन्तिम परमार राजा गढसिंह धरु हुआ, उसने अपने भानेज नांदौल के चौहान राजा को थराद जागीर दे दी। किसी किसी का यह भी कहना है कि नांदोल के चौहान राजाने गढसिंह परमार को मार करके थराद पर अपना अधिकार जमा लिया। इसके बाद छः पीढो तक चौहानोंने यहाँ गज्य किया / बाद में महमद-शाहबुद्दीनगोरी और कुतबुद्दीनईबर के समय में सन् 1174 से 1206 इस्वी तक खुब युद्ध करके और अन्तिम चौहानराजा पुंजाजीराणा को मार करके मुलतानी मुसलमानोंने थराद जागीर पर अपना कब्जा जमाया / राणा पुंजानी चौहान के मारे जाने पर उसकी सेढी नामक राणी अपने बाल कुँवर वजाजी को लेकर गुप्त-रीत से दीपा