Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 229) थुलडा नामक टेकरी ( पहाड़ी ) पर दीपा भील के श्राश्रय में जा रही / दीपा भील उन दोनों को पारकर गाँव में अपने पिता के घर छोड पाया / यहाँ वजाजी कुंमर का लालन पालन श्रच्छी तरह से होने लगा / वजाजी कुमर जब योग्य अवस्थावाला हुश्रा तब उसने कतिपय भीलों की सहायता से थराद से पश्चिम 10 मील दूरी पर एक बावडी बनवाई और वहाँ उसीके नाम से वाव नामक कसबा ( गाँव ) नया वसा कर अपना राज्य कायम किया / यह कसबा सन् 1244 इस्वी में वसाया और अब तक वजाजी के वंशजों के ही अधिकार में है। इस्वी सन् 1403 में गुजरात के मुख्य अमीर फतेखानने तेरवाडा और राधनपुर मुलतानी कुटुम्ब से छीन लिये, इससे मुलतानी कमजोर पड गये और उनके हाथ से थराद जागीर निकल गई / इस्वी सन् 1700 में फीरोजखान जालोरी ने थराद को अपनी सत्ता में ले लिया और सन् 1730 के लगभग यह तालुका जालोरियों के हाथ से निकल कर गधनपुर के जबानमर्दनखान बांबी के अधिकार में गया / अभेसिंहजी सर सुबाने बांबियों को निकाल कर थगद को एक नायब की देखरेख नीचे कायम किया। इसके बाद सन् 1736 इस्वी में यहाँ का हाकिम जेतमल चौहान हुआ जो वाव का भायात था / वाव के गणा वजानी चौहानने सोचा कि जेतमल बल पकडने पर भविष्य में अपने लिये हरकत पहुंचानेवाला हो पड़ेगा। ऐसा समझ के उसने पालनपुर के बहादुरखान के द्वारा जेतमल को निकलवा दिया और थराद जागीर को अपने हस्तगत कर ली।