Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (253) कर और संघ का आपसी लेश (कुसंप ) दूर करके आनन्द पूर्वक प्रतिष्ठाञ्जनशलाका का सारा प्रबंध किया 3. - साधुमंडल सह श्रीभूपेन्द्रसूरिजी महाराज को बुला कर, उनके हाथ से सं० 1981 ज्येष्ट सुदि 2 बुधवार के दिन राजगढस्थ संघने अति उत्साह और महोत्सव से श्रीसद्गुरु (प्रतिमा ) की स्थापना की 4." पृष्ठ 46 इस गुरुप्रतिमा को यहाँ के कतिपय भवाभिनन्दी द्वेषियोंने खंडित कर दी थी। इस लिये उसके स्थान पर दूसरी हुबोहुब प्रतिमा बिराजमान की गई / उसका लेख यह है कि " संवत् 1982 मगसिर सुदि 10 वुधवार के दिन राजगढ निवासी त्रिस्तुतिक जैनसंघने प्रतिष्ठाञ्जनशलाका कराई और श्रीविजयभूपेन्द्रसूरिजीके आदेश से मुनिश्रीयतीन्द्रविजयजीने प्रतिष्टा ( अञ्जनशलाका ) की / " पृष्ठ 47 1 पाटण- (4) . १-पाटण ( अणहिल्लवाडे ) में अपने पिता त्रिभुवनपाल के नाम से त्रिभुवन-विहार नामक चैत्य बनवाया। उसके चारों तरफ बहत्तर देवकुलिका बनवाई, उनमें रत्नों की 24, पतिल तथा स्वर्णमयी 24 और चांदी की 24 जिनप्रतिमाएँ, तथा मूलमंदिर में अठारह भारमयी 125 अंगुल की रत्नों की श्रीनेमनाथजी की प्रतिमा विराजमान की। इसके बनाने में कुल सोलह क्रोड रुपये खर्च हुए / ( उपदेशतरंगिणी) पृष्ठ 65.: