Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (199) इस जिनालय में पाषाण की 7, सर्वधात की 7 और चांदी के गट्टा (सिद्धचक्र ) जी 2, एवं कुल 16 प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो सभी-१८७३ के साल की प्रतिष्ठित हैं। यह मन्दिर अति जीर्ण है और एक विशाल चोक में बना है। चोक में एक जूने समय का बना हुआ भोयरा भी है जो बन्द किया हुश्रा है। __2-3 दूसरा मन्दिर गांधी मूता के वास में है, जो शिखर बद्ध है। इसमें श्रीशान्तिनाथजी की सफेद वर्ण की तीन फुट बड़ी मूर्ति स्थापित है, जो सं 1634 फागुण वदि 1 शुक्रवार के दिन श्रीविजयहीरसूरिजी महाराज के हाथ से प्रतिष्ठित हुई है। इसमें पापाण की 16, सर्वधात की 21, गट्टाजी 1 और पादुका जोड़ 1 एवं 39 मूत्तियाँ बिराजमान हैं / इसीके दहिने भाग में तीसरा गृह-मन्दिर है, जिसमें परिकरसहित सफेदवर्ण की सवा हाथ बड़ी श्रीपार्श्वनाथजी की मूर्ति स्थापित है / इसकी पलाठी पर लिखा है कि-- __ संवत् 1683 वर्षे आषाढवदि 4 गुरौ श्रीमाल. वासी सा० पेमा खेमा पार्थबिंबं का०, प्र. श्री श्रीविजयदेवसूरिभिः।" इसमें पाषाण की 7 और सर्वधात की 1 एवं 8 प्रतिमाएँ हैं, जो 15 और 16 वीं सदी के बीच की प्रतिष्ठित हैं। इसके दहिने तरफ तपागच्छ का जूना उपासरा है जिसके एक कमरे के ताक में बादामीवर्ण की एक हाथ बडी श्रीमहावीर भगवान् की 18 वीं सदी की प्रतिष्ठित मूर्ति है। इसकी दृष्टि के