Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (204) कि- 'मूर्ति को तोड़कर टुकड़े करो, और इससे बीबी के लिये आभूषण और घोडे के गले में डालने को घूघरमाल बनाओ।' आज्ञा मिलते ही सोनी मूर्ति को तोडने की तैयारी करने लगे, इतने में तो वहाँ हजारों भ्रमर गुंजारव करते हुए निकले। उन्होंने सोनियों, खान की बीवियों और पहरेदारों को काटना शुरु किया, जिससे चारों ओर हा हा कार मच गया। चारों तरफ घनघोर काली घटाओं के सहित प्रलयकारी तूफान खडा होने से जीने का भी संशय होने लगा। लश्कर में मार पडना शुरु हुई, हाथी घोडों का संहार होने लगा और स्थान स्थान पर लोग मरने लगे। गजनीखान भी भयविह्वल हो जमीनपर गिर पड़ा / हजारों लोग पोकार करने लगे कि-' खूनकार ! पार्श्वनाथ की मूर्ति को भीनमाल पहुंचाओ, नहीं तो हम-आप सभी मर जायँगे। आकाश से गेबी आवाज हुआ कि पार्श्वनाथ-प्रतिमा को सन्मान के साथ वापिस भीनमाल पहुंचा दे, नहीं तो वगैर मोत मर जायगा, तेरे को कोई यहाँ दफनानेवाला भी नहीं मिलेगा / गजनीखानने विचारा कि-' यह असली आदम का रूप है, यह केवल मान चाहता है, इसलिये अब हठ पकडना ठीक नहीं है / ' ऐसा निश्चय करके पार्श्वनाथ-प्रतिमा को सिंहासन पर विराजमान की और हाथ जोडकर गजनीखान बोला कि 'प्रभो ? आप अल्ला, अलख और आदम हो, मापकी