Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (2.1) "जालोरनयरि गजनीखांन, पिसुन वचनि प्रभु धरिया वान। वरजग संघवी वरीउ जाम, पास पेखीनिं जिभस्यूं धान // 25 // स्वामी प्रतिमा धरणेंद्रि धों, मानी मलिकति वली वसी कर्यो। पूजी प्रणमी आप्या पास, संघचतुर्विध पूगी आस // 26 // स्वामी सेवातणि संयोगि, पाल्हपरमारनो टलियो रोग / सोल कोसीसांजिनहरसिरि, हेमतणां तिणि कीधांधरि॥२७॥ भीनमालि भयभजंनन नाथ,.......श्रीपारसनाथ / " __इस तीर्थमाला से प्रायः ऊपर की हकीकत मिलती जुलती ही है। इससे यह प्रतिमा कैसी चमत्कारिणी और महिमावाली है ? यह भी साफ जाहिर हो जाता है / संवत 1661 में तपागच्छीय हंसात्नसृरिजी के प्रशिष्य और पं० सुमतिकलश के शिष्य कवि पुण्यकलशने इन्हीं प्रभावशाली पार्श्वनाथ का स्तवन बनाया है / उसमें लिखा है कि___" श्रीमाल में किसी व्यवहारीने सौधशिखरी सुन्दर जिनालय बनवा कर, उसमें स्वर्णपित्तलमय पार्श्वनाथ की भव्य मूर्ति विराजमान की थी, जो म्लेच्छों के शासनकाल में स्वर्णाभूषण सहित भूमि में भंडार दी गई थी। संवत 1651 में देवल की ईटे खडकाते हुए वह प्रतिमा प्रगट हुई। मेता लक्ष्मण और भावडह गच्छीय पंन्यास आदिने उसको शान्तिनाथ भगवान् के मन्दिर में स्थापन कर दी। इस समय देशपति जालोर का गजनीखान था। उसका एक सुबा भीनमाल रहता था। उसने गजनीखान को सूचना दी कि