Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (167 ) _संवत् 1656 वैशाखसितपूर्णिमास्यां तिथौ, गुरौ, मरुधरायां हरजीनगरवास्तव्य-प्राग्वटज्ञातीय वृ० चांपासुत केरा तस्य भार्या जेतीदे तया स्वात्मार्थे श्रीआदीश्वरबिम्ब कारितं, प्रतिष्ठितं भ० श्रीरत्नसूरि तत्पट्टे चमासूरि तत्पढे श्री देवेन्द्रसूरि तत्पट्टे कल्याणमूरि त० श्रीविजयप्रमोदसूरिशिष्य भ० श्रीविजयराजेन्द्रसूरिभिः / श्रीसुधर्मतपगणे शिष्य मो. हनविजयलिपिकृतं श्रीकोरटानगरे।" इतनी ही बड़ी दूसरी पाषाण-मय श्रीआदिनाथजी की प्रतिमा है / उसकी पलांठी पर लेख है कि- "विक्रमार्कतः सं: 1655 वर्षे शालिवाहनशाके 1820 प्रवर्त्तमाने मासोत्तमे फाल्गुनकृष्णपंचम्यां गुरौ वासरे मरू धरायां राष्ट्र. वंशीय-महाराजाधिराज-राजराजेश्वरश्रीश्री सिरदारसिंहजी तेषां मान्य-राष्ट्र वंशीयचांपावतठकुरश्रीरत्नसिंहजीराज्ये हरजीनगरे श्रीआदिनाथविम्ब का०,प्रतिष्ठितं भट्टारकश्रीविजयरत्नसूरि, तत्पट्टे क्षमासूरि-देवेन्द्रसूरि-कल्याणमूरि-प्रमोदसूरि-पट्टप्रभावक-क्रियोद्धारकर्ता भ० श्री विजयराजेद्रसूरिभिः / प्रतिष्ठा कारिता प्राग्वाटज्ञातीयवृद्धशाखायां मनासुतसूरतिंगतत्पुत्रौ चमनाटेकचंदाभ्यां सपित. भ्यां, आहोरनगरे सुधर्मतपागच्छे लिपिचक्रे मोहनविजयः।" .. इनके अलावा गाँव में एक दो मंजिला पक्का उपासरा, तीन बडी धर्मशाला, एक श्रीमहावीरजैनयुवकमंडल, और एक जैन-स्कूल है। स्कूल में जैन जैनेतर बालक धार्मिक और व्यवहारिक शिक्षा पाते हैं, और इसके निभाव के वास्ते 10000