Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (19.) उनेम चोरासी दरीखाने थे / एक हजार गणपति, 4000 क्षेत्रपाल, 84 चंडिका, 11000 महादेव के लिंग, और 18000 दुर्गादेवी, आदि के देवल थे। इनके अलावा चार हजार वेदशाला, 1000 ब्रह्मशाला, 4000 मठ, 18000 व्यापारशाला, दो लाख दुकानें, और एक लाख साठ हजार चोसठ सतखंडे महेल थे। 45000 ब्राह्मण, 700 भृग्वेदी, 12000 यजुर्वेदी, 22000 सामवेदी, 4000 अथर्ववेदी ब्राह्मण रहते थे, और 60000 श्री मालबंशी-महाजन, तथा पोरवाड़ और आठ हजार चोसठ धनोत्कटा ( सुनार ), 2000 कंसारा, 9000 नगरनायिका, 36000 क्षत्रिय, 5000 रंगारे, 5000 सोमपा, 5000 कुंभार, 3000 नट, 1000 नाई, 1000 धोबी, 4000 माली और अन्यजातियों के 5000 वैश्य, तथा 2500 शूद्र निवास करते थे; और वे सभी समृद्धि-पूर्ण थे / परन्तु काल की विचित्रता से और नगर के ऊपर समय समय पर आये हुए राजकीय हमलों से इस नगर की उक्त समृद्धि दिनों दिन घटती गई और वह सन् 1861 में नीचे मुताबिक रह गई-- 375 महाजन जैन 12 कुंभार 12 गोला 200 श्रीमालब्राह्मण 4 मुसल्मान कुं० 2 जाट 75 सेवक, भोजक __ 70 रबारी 1 देशंत्री 30 सुनार 10 भिक्षुक, साधु 1 प्राचारी 35 बंधारा 10 सामी अलीक 13 कोली . 4 कंसारा '15 पिंजारा मु० 30 वेश्या 30 घांची 3 लुहार 2 मेमन