Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 193) जसवन्तसिंहजीने राणा सालजी से लोयाणा ( जसवंतपुरा ) को छीन कर उस परगने में भीनमाल को मिला दिया | उस समय से अब तक यह उसी परगने में गिना जाता है / . श्रीमालपुराण के लेखानुसार यह नगर सत्ययुग ( कृतयुग) में श्रीमाल, त्रेतायुग में रत्नमाल, द्वापरयुग में पुष्पमाल और कलियुग में भिन्नमाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और लावण्यसमयरचित 'विमलप्रबन्ध' के कथनानुसार सत्ययुग में पुष्पमाल, त्रेता में रत्नमाल, द्वापर में श्रीश्रीमाल और कलियुग में भिल्लमाल नाम से पहचाना गया। श्रीइन्द्रहंसगणिने स्वरचित 'उपदेशकल्पवल्ली' नामक ग्रन्थ में लिखा है कि-- * " श्रीमालमिति यन्नाम, रत्नमालमिति स्फुटम् / पुष्पमालं पुनभिन्नमालं युगचतुष्टये // 1 // चत्वारि यस्य नामानि, वितन्वन्ति प्रतिष्ठितम् / अहो नगरसौन्दर्यमाहार्य त्रिजगत्यपि // 2 // " प्रबन्धचिन्तामणि, विमलप्रबन्ध और ओसवंशमुक्तावली प्रादि जैन ग्रन्थ, और श्रीमालपुराण तथा भोजप्रबन्ध आदि जैनेतर ग्रन्थों में इसके जुदे जुदे नाम पडने के कारणों की कथाएँ लिखी हुई हैं, जो उन्हीं ग्रन्थों से बांचकर समझ लेना चाहिये। . .. प्राचीन जमाने में इस नगरी के चारों ओर पांच योजन ( 25 कोश ) की शहरपना और खाई थी, जो जल से परिपूर्ण भरी हुई थी। इस शहरपना ( कोट ) के चोगसी दरवाजे और