Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
View full book text
________________ (161) 158 सकराना यहाँ जैनों का एक भी घर नहीं है, परन्तु एक सौधशिखरी प्राचीन जिन-मन्दिर है, जिसका जीर्णोद्धार पाहोर-मंडन श्रीगोड़ी-पार्श्वनाथ के मन्दिर तरफ से हुआ है। इसमें मूलनायक श्रीपार्श्वनाथजी की भव्य मूर्ति बिराजमान है जो प्राचीन, सुन्दर और दर्शनीय है। 159 लेटा सूखडीनदी के वाये किनारे पर यह गाँव है / यहाँ दसा ओसवाल जैनों के 30 घर, एक उपासरा और एक छोटा-शिखरवाला जिनालय है / मन्दिर में मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभस्वामी की नवीन प्रतिष्ठित प्रतिमा स्थापित है। यहाँ के जैन भावुक और साधु साध्वियों के अनुरागी होने पर भी विवेकशून्य हैं। 160 जालोरगढ़___ सोनागिर-पहाड़ के नीचे उत्तर-पूर्व की ढालू जमीन पर वसा हुआ यह पुराना शहर है, जो चारों ओर पुराने जीर्ण और पतितावशिष्ट कोट ( शहर-पना ) से घिरा हुआ है और इसके पूर्व और उत्तर चार दरबाजे हैं, जो पक्के मजबूत बने हुए हैं। ___मारवाड़ के इतिहास से पता लगता है कि-लगभग विक्रम की दशवीं सदी में वारा नामक परमार राजपूतने मारवाड़ के चौदह हजार गाँवों को नव विभागों में विभक्त किये जो नवकोटी-मारवाड़ के नाम से सुप्रसिद्ध हुए। जालोर का पहाड़ी हिस्सा वारा-पंवार के छोटे भाई भोज की पांति में आया /