Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 183) . त्रीयमुख्यमंत्री मु. अखयचन्द्रेण सुत-लक्ष्मीचन्द्रयुतेनाऽयं प्रासादः कारितश्च / कारिगर सोमपुराकाशीराम-कृतः / ___शहर के बाहर 'संडेलाव' नामका बड़ा तालाव है, उसके किनारे पर एक चामुंडामाता का देवल है। उसके लगते ही एक मोपडी में एक मूर्ति है, जो चोसठजोगणी के नाम से प्रसिद्ध है। उसके नीचे लेख खुदा हुआ है कि "संवत 1175 वैशाखवदि 1 शनौ श्रीजाबालिपुरीयचैत्ये सामंतश्रावकेण वीरकपुत्रेण उवोचनपुत्र शुभंकर खेहडसहितेन च तत्पुत्रदेवांगदेवधर....तथा जिनमतिमार्या प्रोत्साहितेन श्रीसुविधिदेवस्य खत्तके द्वारं कारितं धर्मार्थमिति, मंगलं महाश्रीः। ___इस लेख से पता लगता है कि-जालोर में सं० 1175 में सुविधिनाथ का मन्दिर विद्यमान था, परन्तु उसके ध्वंस हो जाने से उसके उक्त लेखवाले ताक की कायोत्सर्गस्थ जैनमूर्ति को उठा कर जैनेतरोंने यहाँ स्थापन कर दी और उसके अंग प्रत्यंग घिसा कर जोगिनी के समान बना डाली। शहर के निकटवर्ती सोनागिर के किले के जिनमन्दिरों की कतिपय जिनमूर्तियों पर रहे हुए लेख इस प्रकार हैं १-संवत् 1681 वर्षे प्रथम चैत्रवदि 5 गुरौ अधेह श्रीराठोडवंशे श्रीसूरसिंघपट्टे श्रीमहाराज श्रीगजसिंहजीविजयीराज्ये मुहणोत्रगोत्रे वृद्धउसवालज्ञातीय सा० जेसा भार्या जयवंतदे पुत्र सा जयराज भार्या मनोरथदे पुत्र सा०सादा मुंभा