Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (17) इस किले पर तीन सौधाशखरी जिन-मन्दिर हैं, जो अति रमणीय और परमार्हत राजा कुमारपाल के बनवाये हुए हैं। सब से बडा और तारंगा-जिनालय का अनुकरण करनेवाला भगवान् वीरप्रभु का मन्दिर है। जिसमें मूल नायक श्रीमहावीरस्वामी की सफेद वर्ण की दो हाथ बडी भव्य मूर्ति बिराजमान है, जो प्राचीन है और सं० 1681 में श्रीदेवसूरिजी महाराज की आज्ञा से जयसागरगणि के हाथ से प्रतिष्ठित हुई है / इसके भी पहले की प्रतिमा जो अतिप्राचीन और खंडित है, मन्दिर के बाह्य-मंडप के एक तोक में स्थापित है / इस जिनालय में पाषाण की छोटी बडी कुल प्रतिमाएँ 25 हैं, जो सोलहवीं सदी की प्रतिष्ठित हैं। . दूसरा मन्दिर चोमुखजी का है, जो पहाडी की ऊंची टोंच पर दो खंडवाला और सुमेरु शिखरवाला है / इसके नीचे ऊपर के खंडों में चारों दिशाओं में आदिनाथ, सुपार्श्वनाथ, अजितनाथ और श्रेयांसनाथ की एक एक प्रतिमा बिराजमान है, जो प्रायः प्राचीन हैं / ऊपर के खंड में सुविधिनाथ अरनाथ वगैरह 4 प्रतिमा हैं। प्रवेश द्वार के दहिने और मूलनायक से बांये भाग पर एक सर्वाङ्ग सुन्दर मूर्ति स्थापित है / इस मन्दिर में सं० 1932 में सरकारी तोपें भरी हुई थीं. उनको काररवाई करके जैनाचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने निकला के इसके जीर्णोद्धार के समय यहाँ पर कतिपय मूर्तियों की स्थापना भी की और मूलनायक श्रीऋषभदेवजी के नीचे के पवासण पर लेख लिखा कि