Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (153) हरसाल पोष वदि 10 का मेला भराता है, जिसमें सेंकडों श्रावक श्राविकाएँ उपस्थित होते हैं। 121 मादड़ी कहा जाता है कि दोसौ वर्ष पहले यहाँ तीनसौ घर श्वेताम्बर जैनों के वसते थे, परन्तु वर्तमान में यहाँ जैनों का एक भी घर नहीं है, शिर्फ किसानों के 30 घर हैं। तारीख 6-5-27 के रोज जमीन खोदते हुए यहाँ सर्वाङ्ग- सुन्दर और अखण्ड दो जिन-प्रतिमाएँ निकली थीं। उनमें एक 3 // फुट बडी श्रीनेमिनाथ भगवान् की, और दूसरी 2 फूट बडी श्रीपद्मप्रभस्वामी की सफेद -वर्ण की है / इन पर लेख नहीं, किन्तु गाँव के बाहर आडवला अरठ के पासवाले शंकर के छोटे मन्दिर के परकोटे में लगे हुए एक खंडित तोरण के नीचे लिखा है किश्रीषडेरकगच्छसूरिचरणोपास्ति प्रवीणान्वयो, दुःसाधोदयसिंहसूनुरखिलक्षमाचक्रजाग्रद्यशः। बिम्ब शान्तिविभोश्चकार स यशोवीरे गुरुमन्त्रिणो, __मातुः श्रीउदयः शिवकृते चैत्ये स्वयं कारिते // 1 // ज्येष्ठशुक्लत्रयोदश्यां, वसुवस्वर्कवत्सरे। . प्रतिष्ठा मादडीग्रामे, चक्रे श्रीशान्तिसूरिभिः 2 संवत् 1288 वर्षे ज्येष्ठ सुदि 13 बुधे / -खंडेरफगच्छाचार्यों के चरणोपासक, शुद्धवंशवाले और समस्त राजाओं में जागृत यशपाले उदयसिंह के पुत्र यशोवीर