Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (145) 1288) यहाँ मंत्री-यशोवीर का बनवाया हुआ सौधशिखरी जिनमन्दिर अवश्य था / परन्तु वह किस कारण भूमि-शायी हुआ ? यह खोज करने की आवश्यकता है / माद्री के जमीदारों का कहना है कि यदि खोज की जाय, और कुछ खर्च से यहाँ का खोद-कार्य कराया जाय तो और भी जिनप्रतिमाएँ निकलने की संभावना है। ठाकुर के पडवे में और गाँव बाहर के मिट्टी डुब्बों को खोदने से अच्छी शिल्पकारी के पत्थर और ईटें निकलती हैं। इनसे भी यहाँ की प्राचीनता का और भारी जिन-मन्दिर होने का अनुमान किया जा सकता है / गाँव से पश्चिम एक जूनी वावडी है, उसमें भी मन्दिर के अनेक पत्थर और ईटें लगी हुई देख पडती हैं / यहाँ से निकलीं जिन पांच जिनमूर्तियों का हाल ऊपर दर्ज है, वे इस समय गुडावालोतरा के यति श्री राजविजयजीने राजकीय कारवाई करके, अपने कब्जे में लेकर खुद के अरहट के बगीचे के एक मकान में विराजमान की हैं / 122 दयालपुरा यहाँ श्वेताम्बर जैनों के 90 घर, एक पक्की धर्मशाला, और एक उपासरा है / गाँव में एक शिखरबद्ध छोटा भव्य मन्दिर है। जिसमें मूलनायक श्रीमहावीरस्वामी की दो फुट बडी सफेद वर्ण की सुन्दर मूर्ति विराजमान है / यहाँ के जैनों में बहुत भाग विघ्नसन्तोषी है, इस वजह से इस गाँव में पूरति वस्ती होने पर भी किसी योग्य साधु का चोमासा, या शेषकाल में भी उनकी स्थिरता नहीं होती। 10