Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (70) इस मन्दिर की चारों ओर सेठ हठीभाई, दीवान अमरचंद दमणी, मामा प्रतापमल्ल आदि प्रसिद्ध धनिकोंने अपने अपने मन्दिर बनवाये / सब मन्दिरों के इर्द गिर्द पत्थर का मजबूत किला करवाया। मन्दिोरों का कार्य पूरा होने पाया था कि इतने में सेठ मोतीसाह का देहान्त हो गया / इस से उनके पुत्र सेठ खीमचंद ने बड़ा भारी संघ निकाल कर शत्रुजय की यात्रा के साथ इस रमणीय टोंक की सं० 1863 में प्रतिष्ठा करवाई। यह संघ बहुत ही बड़ा था, इसमें 52 गांवों के और संघ श्राकर मिले थे और उन सब का संघपतित्व खीमचंद सेठ को प्राप्त हुआ था / कहा जाता है कि इस टोंक के बनवाने में एक करोड़ से भी अधिक खर्चा हुआ था। इसमें 16 तो बडे बड़े मन्दिर हैं और सवासौ देवरियाँ हैं / जहाँ 80-85 वर्ष पहिले भयंकर गर्त यात्रियों के दिल में भय पैदा करता था वहीं आज स्वर्गविमानों के समान मन्दिरों को देख कर आनंद का पार नहीं रहता। 'सचमुच ही संसार में समर्थ मनुष्य क्या नहीं कर सकता / ' 3 तीसरी-बालाभाई की टोंक-गोघाबन्दर के रहनेवाले सेठ दीपचंद कल्याणजी, जिनका बचपन का नाम बालाभाई था। लाखों रुपये व्यय कर संवत् 1893 में इस टोंक को बनवाया है / इसमें छोटे बड़े अनेक मन्दिर अपने ऊन्नत शिखरों से प्राकाश के साथ बातें कर रहे हैं / इस टोंक के ऊपर के सिरे पर एक मन्दिर है, जो "अ तबाबा" का मन्दिर कहा जाता है। १-बहुत से मुर्ख लोग इसे भीम की मूर्ति समझ कर पूजते है. पर यह भीमकी नहीं, आदिनाथ भगवान की मूर्ति है।