Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 97 ) लिखी हुइ हैं / सोलहवीं सदी में छदुशाह नाम के एक करोड़पति सेठ यहाँ हो गये हैं। इसकी बहुतसी पुस्तकें उसी की लिखाई हुई हैं। चौथा नम्बर, फोफलियावाड़े की वखतजी की सेरी के भंडार का है / इसमें 2686 पुस्तकें काराज पर और 137 ताड़पत्र पर आलेखित हैं / पांचवां नम्बर, सागरगच्छ के उपाश्रय के भंडार का है इसमें छोटे छोटे दो तीन संग्रह हैं जिनमें काग़ज़ पर लिखी हुई बहुतसी पुस्तकें हैं / तीसरे और चौथे नम्बर के भंडारों में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंस और गुजराती भाषा में लिखे हुए सिद्धान्त, तर्क, प्र. माण, व्याकरण, काव्य, कोश, अलङ्कार, ज्यौतिष, छन्द, इतिहास, आदि प्रायः सभी विषयों के ग्रन्थ हैं / ये सभी पुस्तकें भले प्रकार सुरक्षित हैं। ताड़पत्र पर लिखी पुस्तकों के मध्य में एक बारीक छेद में सूत या रेशम की पतली डोरी पोकर सब पत्र एक साथ बांधे हुए हैं और प्रतिपुस्तक के दोनों ओर मजबूत लकड़ी की पट्टियाँ लगा कर सूत की नाड़ियों से कपड़े की चौरस झोलियों में बांधी हुई हैं। ___यहाँ श्वेताम्बर जैनों के 2000 घर, स्थानकवासी जैनों के 15 घर, दो धर्मशाला, कई उपाश्रय, जैन पाठशाळा और लायब्रेरी है / शहर में सर्वत्र नल लगे हुए हैं. लोग उन्हीं का जल काम में लेते हैं और इसी कारण यहाँ गलीचवाड़ा अधिक है। यहाँ से सवा मील के फासले पर अणहिलवाड़ा है जो राजा कुमारपाल की राजधानी था और उसका विध्वंस होने बाद