Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (103 ) जमान वर्तमान श्री अजितनाथस्वामी की भव्य मूर्ति पांच हाथ से कुच्छ बडी है, जो ईडरगढ के राव श्रीपुंजाजी के मान्य और संघ में अग्रेसर वत्सराज संघवी के पुत्ररत्न गोविन्द संघवी की भराई हुई है, और इसकी प्रतिष्ठाञ्जनशलाका श्रीसोमसुन्दरसूरिजी महाराज के कर कमलों से हुई है। दर असल में यह तीर्थ परमाईत् महाराजा कुमारपाल का स्थापित किया हुआ है। इसके विषय में एक ऐसी कथा प्रचलित है कि 'राजा कुमारपालने शाकंबरी के राजा अर्णोराज का राज्य लेने के लिये दो चार वार चढाई की, परन्तु उसे विजय प्राप्त नहीं हुआ / तब उसके वाग्भट नामक मंत्रिने कहा कि राजन् ! पाटण के जिनालय की देवरी में मेरे पिता उदयन मंत्रि की स्थापित श्रीअजितनाथ की प्रतिमा है जो अद्भुत प्रभावशालिनी है। उसकी विधिपूर्वक पूजा करके चढाई की जाय तो बहुत जल्दी विजय होगा / मंत्रिके वचन को सुन कर कुमारपालने संकल्प किया कि यदि पूजा किये बाद चढाई करने में मेरा विजय होगा तो मैं इसके स्मारकरूप में एक तीर्थ की स्थापना करूंगा। इस प्रतिज्ञा से श्रीअजितनाथ की पूजा करके राजाने अर्णोराज पर चढाई की, जिस में राजा को शीघ्र ही विजय-लाभ मिला / कृतज्ञशिरोमणि चौलुक्यराज कुमारपालने अपनी कृत प्रतिज्ञा के अनुसार तारंगा-पहाड़ी पर अद्वितीय ऊंचाईवाला जिनमन्दिर बनवाया और उसमें निजगुरु श्रीहेमचन्द्राचार्य के