Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (108) होने की भी पूरी आवश्यक्ता है। इस कसबे के निवासी जैन नाम मात्र के जैन और साधारण स्थितिवाले हैं। इसके अलावा यहाँ एक दिगम्बरजैनों का भी मन्दिर है जो जीर्ण हालत में है। 97 प्राचीनतीर्थ-कुंभारिया चारों ओर पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ सघन झाड़ी के मध्य में बसा हुआ किसी समय यह बडा भारी शहर था / यहाँ अब भी भूशायी हजारों खंडहरों की श्रेणियाँ मौजुद हैं जिनके अवलोकन से किसी समय में हजारों की गृह-संख्या का अनुमान किया जा सकता है / खंडहरों में पुराने जमाने की 1446 इंच लंबी पहोली इंटें अब भी देख पडती हैं / इस नगरी के चोतरफ का कोट भग्नावशेष और जला हुआ दिखाई देता है / इस के प्राचीन नाम आगसन, आरासुर, पारसन आदि हैं / इस समय यह दांता-भवानगढ के राज्य में है और दश वीस झोंपड़ों के सिवाय यहाँ कोई वसती नहीं है / ____ यहाँ श्वेताम्बर जैनियों के सौधशिखरी पुरातन पांच जिनमन्दिर हैं जो कोरणी-धोरणी में श्राबू-देलवाडा के मन्दिरों से किसी प्रकार कम नहीं हैं / सब से बडा मन्दिर नेमनाथ का है जो अपनी उच्चता और कारीगिरी से सुशोभित और यात्रियों के चित्त को मोहित करने वाला है। इस में तीर्थपति श्रीनेमनाथ भगवान् की 3 हाथ बडी सफेदवर्ण की भव्य मूर्ति बिगजमान है जो सं० 1675 महासुदी 4 शनिवार के रोज श्रीदेवसूरिजी के कर-कमलों से प्रतिष्ठा जनशलाका कराके वृद्धशाखीय अोसवाल