Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (95 ) ग्रन्थ यहीं पर रचा था और कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरिजीने सिद्धहेमशब्दानुशासन, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघन्टुसंग्रह, देशीनाममाला, प्राकृतद्वाश्रयमहाकाव्य, संस्कृतद्वाश्रय-महाकाव्य, त्रिषटिशलाका-पुरुषचरित्र, योगशास्त्र, आदि अनेक ग्रन्थों की रचना इसी पाटण में की थी। कुमारपालराजा के स्थापित भंडार और त्रिभुवन-विहार, कुमार-विहार आदि सुन्दर मन्दिरों को उसके उत्तराधिकारी अजयपालने समूल नाश कर दिये थे / इस विहार ( चैत्य ) के विषय में उपदेशतरङ्गिणी-कारने लिखा है कि "पत्तने स्वपितृ-त्रिभुवनपालस्य नामाङ्कितः त्रिभुवन-विहारः कारितः / 72 देवकुलिकायुतः / तासु 24 प्रतिमारत्नमयः, 24 पित्तलसुवणेमयः, 24 रूप्यमयः, 14 भारमय्यः मुख्यप्रासादे 1 शत 25 अङ्गुलप्रमाणारिष्टरत्नमयी नेमिनाथप्रतिमा कारिता / तत्र द्रव्यव्ययः 16 कोटीप्रमाणः।" ___ इसी त्रिभुवन-विहारके अंदर कुमार-विहार था, जिसमें हेमचन्द्राचार्य प्रतिष्ठित श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की भव्य मूर्ति थी / वर्तमान में इन दोनों मन्दिरों का नाम-निशान भी नहीं रहा / ... यहाँ वर्तमान में छोटे बड़े 112 मन्दिर हैं जिनमें सब से प्राचीन पंचासरा-पार्श्वनाथ का मन्दिर है / यहाँ के सभी जिनमन्दिरों में सफाई और पूजा का बहुत ही अच्छा प्रबन्ध है / इस समय यहाँ छोटे बडे 10-12 जैनभंडार हैं। जिनमें पांच बड़े