Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (94) स्थान है / यह प्रणहिलपुर-पाटन, सिद्धपुर-पाटन और अणहिलवाडा के नाम से भी विख्यात है / मुसलमानों की पुस्तकों में इसका नाम नहरवाला लिखा है / इस कसबे की विशेष प्रख्याति का कारण यहाँ के पुरातन जैनपुस्तक-भंडार और जिनमन्दिर हैं / संवत् 802 में वनराज चावडेने पाटण की स्थापना की / तभी से यहाँ के पुस्तक-संग्रह की भी स्थापना हुई / शीलगुणसूरिजी महाराज की साहाय्य से वनराजने अपने कार्य में बहुत सफलता प्राप्त की थी। नगर प्रतिष्ठा करते समय सब से प्रथम उसने जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा की थी | पंचासर नामक गाँव से श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की भव्य मूर्ति ला कर उसने अपने निर्माण किये मन्दिर में स्थापित की थी। यह गाँव पहले पाटनगर कहाता था / वनराज के पिता जयशिखर के राजत्व काल में कनौज के राजा भूआने इसे विध्वस्त कर दिया था। जिस समय पाटण की स्थापना हुई उस समय वह ऊजड पडा था / पाटण की स्थापना होनेपर थोडे ही समय में वह अच्छी तरह प्राबाद हो गया / दिन पर दिन इसकी उन्नति होने लगी / मारवाड और काठियावाड प्रादि से आ आ कर सैंकडों जैन और जैनेतर कुटुम्ब वहाँ बस गये और यह एक अच्ले शहर के समान गिना जाने लगा। नवानवृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिजी, द्रोणाचार्य, श्रीचन्द्रसूरिजी और मल्लधारी श्रीहेमचन्द्रसूरिजी आदि व्याख्याताओंने अपनी व्याख्या ( टीका )एँ यहीं पर रहकर लिखी थीं। वादिदेवसूरिजी ने 84000 हजार श्लोक प्रमाण का स्याद्वादरत्नाकर नामक तर्क