Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (73) 8 नवमी-चौमुखजी की टोंक-यह टोंक दो विमागों में घंटी हुई है / बाहर के विभाग को 'खरतरवसही' और अन्दर के विभाग को 'चौमुखवसही' कहते हैं / यह टोंक पर्वत के सब से ऊंचे भाग पर बनी हुई है / चौमुखवसही के मध्य में आदिनाथ भगवान का चतुर्मुख मन्दिर है / यह मन्दिर क्या है, मानों एक बड़ा भारी गढ है / इसकी लम्बाई 67 फूट और चौड़ाई 57 फूट है / इसका गुम्बज 96 फूट ऊंचा है / मन्दिर के पूर्व मंडप है जिसके पश्चिम 31 फूट लम्बा और इतना ही चौडा एक कमरा है / इस कमरे के दोनों बगलों में चबूतरे पर एक एक द्वार है। मध्य में 12 स्तंभ हैं, इसकी छत गोल गुम्बजदार है / कमरे में हो कर गर्भागार में, जो 23 फुट लम्बा और उतना ही चौड़ा है, जाया जाता है / इसमें मूर्ति के सिंहासन के कोनों के पास 4 विचित्र खंभे लगे हैं। फर्श से 56 फुट ऊंचा मूर्ति के बैठने का स्थान है / चारों ओर 4 बड़े बड़े द्वार हैं / गर्भागार की दीवार, जिस पर मूर्तियाँ बिराजमान हैं, बहुत ही मोटी है। उसमें अनेक छोटी छोटी कोठरियाँ बनी हुई हैं / फर्श में नील, श्वेत तथा भूरे रंग के सुन्दर संगमर्मर के टुकड़े जड़े हुए हैं। गर्मागार में 2 फुट ऊंचा, 12 फुट लम्बा और उतना ही चौड़ा श्वेत संगमर्मर का सिंहासन बना हुआ है / सिंहासन पर श्वेत ही संगगर्मर की बनी हुई 10 फुट ऊंची आदिनाथ भगवान की 4 मनोहर मूर्तियाँ पद्मासनासीन हैं / गर्भागार में के चारों ओर के द्वारों में से प्रतिद्वार की ओर एक एक मूर्ति का मुख है; इस लिये यह