Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
View full book text
________________ खिल्ल, नारद और अइमत्तामुनि की निर्वाण देवरी के दर्शन किये बाद, राम, भरत, शुकराज, थावचा और सेलक मुनि की कायोत्सर्गस्थ प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। सब से अन्तिम हडे ( टेकरी ) पर शुकोशलमुनि के चरण और हनुमान की देवरी आती है जिसमें सिंदूर-लिप्त वानराकार हनुमान की मूर्ति है / इसी प्रकार की गणेश, भवानी प्रादि हिन्दू देव देवियों की मूर्तियाँ और कई जगह स्थापित हैं। यहाँ से आगे दो रास्ते निकले हैं-एक सीधा प्रथम टोंक को जाता है और दूसरा सव टोंकों में होकर प्रथम टोंक को जाता है / पर्वत की चोटी के दो भाग हैं। ये दोनों ही लगभग तीनसौ अस्सी अस्सी गज लम्बे हैं और सर्वत्र ही जिन-मन्दिरमय हो रहे हैं। मन्दिरों के समूह को टोंक कहते हैं / टोंक में एक मुख्य मन्दिर और दूसरे अनेक छोटे छोटे मंदिर होते हैं / यहाँ की प्रत्येक टोंक, एक एक मजबूत कोट से धिरि हुई है। एक एक कोट में कई कई दाजे हैं / इन में से कई कोट बहुत ही बड़े बड़े हैं | उनकी बनावट बिलकुल किलों के ढंग की है। टोंक विस्तार में छोटे बड़े हैं। पर्वत पर पहली टोंक सब से बड़ी है / उसने पर्वत की चोटी का दूसरा हिस्सा सब का सब रोक रक्खा है / पर्वत की चोटी के किसी भी स्थान में खड़े होकर देखा जाय तो हजारों मन्दिरों का बड़ा ही सुन्दर, दिव्य और पाश्चर्य-जनक दृश्य दिखलाई देता है। इस समय दुनिया में शायद ही कोई पर्वत होगा जिस पर इतने सघन, अगणित और