Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (16) प्राचीन नाम वल्लभीनगरी है / अब भी यहाँ प्राचीन शिला-लेख और खंडहर निकलते हैं / पेश्तर यहाँ शत्रुजय की तलेटी थी / श्रीमान् देवाचिगणिक्षमाश्रमणस्वामी ने भागमों को यही पुस्तकारूढ किये थे। यहाँ के मन्दिर में उनकी एक भव्य मूर्ति भी बिराजनान है / यहाँ श्वेताम्बर जैनों के 100 घरं, 2 उपासरा, 2 धर्मशाला, 1 जैनपाठशाला, 1 कन्याशाला, 1 अस्पताल और एक जिन मंन्दिर है। मंदिर में मूलनायक भगवान् श्रीपार्श्वनाथस्वामी. की भव्य मूर्ति स्थापित है। गाँव में पकी सड़क और रेल्वे स्टेशन भी है। __ 32 चमारड़ी. यह गाँव एक छोटी पहाड़ी के नीचे वसा हुआ है / इसमें श्वेताम्बर जैनों के 4 घर, एक उपासरा और एक जिनगृहालय है। इसके अलावा गाँवसे कुछ दूर कबीर-पन्थी और दादुपन्थी के दो अखाड़े बने हुए हैं और उन्हीं के पास दो धर्मशाला यात्रियों के लिये बनी हुई हैं। 33 वरतेज- एक छोटी नदी के किनारे पर यह गाँव बसा हुआ है।.. हैं-झालावाड, हालार, सौराष्ट्र, और गोहेलवाड / जिनमें एक पोलिटिकल एसीस्टेन्ट रहते हैं जिनको जिलाजज और माजीष्ट्रेट के समान अखतियार है / काठियावाड में जैनों के शत्रुजय और गिरनार ये दो भारी तीर्थ-धाम हैं। विक्रम की 13-14 वीं सदी में काठिजाति के लोग कच्छ से आकर प्रायद्वीप में वसे, तब से इसका नाम काठियावाड पडा। इसका दक्षिण-पश्चिम भाग सौरा ( सौराष्ट्र) के नाम से प्रसिद्ध हैं /