Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (45) और इसके दाहिने भाग की बगल पर गली में भवन' है / तीसरा मन्दिर शान्तिनाथस्वामी का है, जिसके एक ही कंपाउंड में तीन गुम्बजदार छत्री बनी हुई हैं / इन तीनों में प्रतिष्ठा सं० 1954 में महाराज श्रीराजेन्द्रसूरीश्वरजीने की है / इसके दाहिने बगल पर भींत से लगता ही एक जूना उपासरा है, जो जैनों के बालकों को पढाने के काम में आता है। इस के अलावा गांव में हरखाजी की और मूणाजी कपूरचंद की दो छोटी धर्मशालाएँ भी हैं यहाँ से तीन मील के फासले पर पश्चिम तरफ 'मोहनखेडा' नामक पवित्र तीर्थस्थान है। यहाँ दो जिनालय और दो समाधि-मन्दिर हैं, जिनके चारों ओर एक पक्का कोट बना हुआ है / सब से बडे मन्दिर में भगवान श्रीऋषभदेवस्वामी की एक हाथ बडी सफेद वर्ण की भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित है। इसके बाह्य-मंडपके छज्जे के नीचे एक शिला-लेख इस प्रकार लगा हुआ है। ___" ॐअहं नमः / श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छीय बीसा पोरवाड संघवी दल्लाजी सुत लूणाजी-नेमचंद्र चम्पालालने श्रीशत्रुजयतीर्थ-दिग्यात्रा-फलार्थ श्रीमोहनखेडा-तीर्थ स्थापन किया और संवत् 1940 मार्गशीर्ष सुदि 7 बुधवार के दिन सितपट जैनाचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के कर कमलों से प्रतिष्ठाञ्जनशलाका कराके