Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (47) फिर से विराजमान की गई है / उसकी पलाठी" ऊपर का लेख इस प्रकार है- .. “करवसुनिधिभूवर्षे मार्गशीर्षशुक्लदशम्यां तिथौ बुधवासरे राजगढवास्तव्य-त्रिस्तुतिक-जैनसंघेन प्रतिष्ठाञ्जनशलाका कारिता, कृता च श्रीविजयभूपेन्द्रसूरेरादेशात् मुनिश्रीयतीन्द्रविजयेन / " - इसके सामने महत्तरिका-प्रवर्तिनी श्रीविद्याश्रीजी का छोटा पर बडा सुन्दर समाधि-मन्दिर है। जिसमें उनकी चरण'पादुका बिराजमान है। दोनों समाधि-मन्दिरों का स्थान इतना उत्तम है, कि जहाँ दर्शकों को पूर्ण शान्ति प्राप्त होती है और दिल में वैराग्य-रस का श्रोत बहने लगता है / यहाँ की भूमि के स्पर्श, दर्शन और विश्राम करने से ऐसा मालूम होने लगता है, मानों परमपवित्र शत्रुजयगिरि की भूमि पर बैठे हुए हो / यहाँ पर कार्तिकी-पूर्णिमा, चैत्रीपूर्णिमा और पौषसुदि 7 एवं तीन मेला भी भराते हैं जिनमें अन्दाजन तीस गांवों के भावुक यात्री उपस्थित होते हैं। 6 पारां-- झाबुवा रियासत में मेघनगर स्टेशन से 10 कोश दूर यह एक छोटासा गांव है। इसमें श्वेताम्बर जैनों के 40 घर, 1 उपासरा और 1 मन्दिर है। मंदिर में मूलनायक भगवान :श्रीऋषभदेवस्वामी की श्यामरंग की अति मनोहर मूर्ति :बिराजमान है। .. ..