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."णमो णाणस्स"
विपाक सूत्र
(मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ और विवेचन सहित)
प्रस्तावना
. उत्थानिका - भूतकाल में अनन्त तीर्थंकर हो चुके हैं। भविष्य में फिर अनन्त तीर्थंकर होवेंगे और वर्तमान में संख्यात तीर्थंकर विद्यमान हैं। अतएव जैन धर्म अनादिकाल से है इसीलिये इसे सनातन (सदातन-अनादिकालीन) धर्म कहते हैं।
केवलज्ञान हो जाने के बाद सभी तीर्थंकर भगवंत अर्थ रूप से प्रवचन फरमाते हैं, वह प्रवचन द्वादशांग वाणी रूप होता है। तीर्थंकर भगवंतों की उस द्वादशांग वाणी को गणधर सूत्र रूप से गूंथन करते हैं। द्वादशांग (बारह अंगों) के नाम इस प्रकार हैं -
. १. आचारांग २. सूयगडांग ३. ठाणांग (स्थानांग) ४. समवायांग ५. विवाहपण्णत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति या भगवती) ६. ज्ञाताधर्मकथांग ७. उपासकदशांग ८. अंतगडदशांग. ६. अनुतत्तरौपपातिक दशा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद। - जिस प्रकार धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकायये पांच अस्तिकाय कभी नहीं थे, कभी नहीं हैं और कभी नहीं रहेंगे ऐसी बात नहीं, किंतु ये पांच अस्तिकाय भूतकाल में थे, वर्तमान में हैं और भविष्यत् काल में रहेंगे। इसी प्रकार यह द्वादशांग वाणी कभी नहीं थी, कभी नहीं है और कभी नहीं रहेगी, ऐसी बात नहीं किंतु भूतकाल में थी, वर्तमान में है और भविष्यत् काल में रहेगी। अतएव यह मेरु पर्वत के समान ध्रुव है, लोक के
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