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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
धनपाल की रचनायें धनपाल का न केवल संस्कृत भाषा पर ही अधिकार था, अपितु वे प्राकृत अपभ्रंश भाषाओं के भी समान रूप से विद्वान् थे । वे गद्य तथा पद्य, काव्य की इन दोनों विधाओं में पूर्ण रूप से निष्णात थे। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश इन तीनों भाषाओं में अपनी रचनाओं को गुम्फित किया है। प्रो. हीरालाल रसिकदास कापड़िया के अनुसार धनपाल की नौ रचनायें हैं - 1. तिलकमंजरी
संस्कृत 2. पाइयलच्छीनाममाला
प्राकृत 3. ऋषभपंचाशिका
प्राकृत 4. श्रावकविधि प्रकरण
प्राकृत 5. शोभनस्तुति की वृत्ति
संस्कृत 6. वीरस्तुति (विरुद्ध वचनीय)
प्राकृत 7. वीरस्तुति
__ संस्कृत-प्राकृत मय 8. सत्यपुरीय-महावीर-उत्साह
अपभ्रंश 9. नाममाला .
संस्कृत 1. तिलकमंजरी
___ यह संस्कृत साहित्य का प्रसिद्ध गद्यकाव्य है जिसमें हरिवाहन और तिलकमंजरी की प्रणय-कथा वर्णित है। इस एक ग्रन्थ की रचना से ही धनपाल ने संस्कृत कवियों में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। संस्कृत में धनपाल की प्रसिद्धि इसी एक ग्रन्थ पर आधारित है। प्रस्तुत अध्ययन में इसका विस्तार से विवेचन किया गया है। 2. पाइयलच्छीनाममाला
यह प्राकृत भाषा का प्राचीनतम कोष है। इसका प्राकृत में उतना ही महत्व है, जितना संस्कृत में अमरकोष का है। इस कोष की रचना धनपाल ने
1. . कापड़िया, हीगलाल रसिकदास : ऋषभपंचाशिका अने वीरस्तुति,
पृ. 16, सूरत, 1933 2. (क) काव्यमाला-85, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई 1938, . (ख) विजयलावण्यसूरीश्वर ज्ञानमन्दिर, बोटाद, भाग 1, 2, 3 वि. सं.
2008, 10, 14 3. (क) Buhler, G. Bezz. Beitr. IV p. 70-166, Gottingen 1879
(ख) बी. बी..एण्ड कम्पनी, भावनगर, वि. सं. 1973 :(ग) केसरबाई जैन ज्ञानमन्दिर, पाटण, वि. सं. 2003 (घ) बेचरदास जीवराज दोषी (सं.) बम्बई, 1960