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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
(1) तिलकमंजरी का सर्वप्रथम उल्लेख श्वेताम्बर जैन नमिसाधु ने रुद्रट के काव्यालंकार पर लिखी अपनी टीका में किया है । नमिसाधु ने इस टीका की रचना वि० सं० 1125 अर्थात् ई० 1068-69 में की थी। नमिसाधु के इस उल्लेख से धनपाल का ई० 1068 से पूर्व होना निश्चित हो जाता है।
(2) ताडपत्र पर लिखित तिलकमंजरी की एक हस्तलिखित प्रति जैसलमेर किले के जैन भंडार में सुरक्षित रखी हुई है, जिसका रचनाकाल वि०सं० 1130 अर्थात् ई० सं० 1072-73 है 3
(3) पूर्णतल्लगच्छ के शांतिसूरि ने तिलकमंजरी पर 1050 पद्य प्रमाण टिप्पण की रचना विक्रम की द्वादश शती के पूर्वार्ध में की थी।
(4) बारहवीं शती में रत्नसूरि ने "अममचरित" नामक ग्रन्थ में धनपाल की प्रशंसा की है।
(5) हेमचन्द्र (1088-1172) ने अपनी रचनाओं में घनपाल का उल्लेख किया है तथा उसके पद्यों को उद्धृत किया है । उसने अपने काव्यानुशासन में तिलकमंजरी के पद्य “प्राज्यप्रभाव-"को,वचन-श्लेष के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है तथा तिलकमंजरी के "शुष्क शिखरिणी--" पद्य को छन्दोनुशासन में मात्रा छंद के रूप में उद्धरित किया है। हेमचन्द्र ने अभिधानचिन्तामणि की स्वोपज्ञ वृत्ति में “व्युत्पत्तिर्धनपालतः" कहकर व्युत्पत्ति के विषय में धनपाल को प्रमाण माना है। .
1. रुद्रट, काव्यालंकार, काव्यमाला-2, 1928, अध्याय 16, पृ० 167 2. Kane, P. V., History of Sanskrit Poetics, p. 155. 3. (क) पन्यासदक्षविजयगणि, तिलकमंजरी-प्रस्तावना, पृ० 19
-विजयलावण्यसूरीश्वर ज्ञानमंदिर, बोटाद, (ख) कापड़िया, हीरालाल
रसिकदास, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, पृ० 218 4. पन्यासदक्षविजयगणि, तिलकमंजरी-प्रस्तावना, पृ० 19 5. चैत्रवद् धनपालो न कस्य राजप्रियः प्रियः। सकणांभरणं यस्माज्जज्ञे तिलकमंजरी ।।
-उद्धृत, देसाई, मोहनदास दलीचन्द, जैन साहित्यनो संक्षिप्त
इतिहास, पृ० 200 6. हेमचन्द्र, काव्यानुशासन, अध्याय 5, पृ० 276 7. हेमचन्द्र, छन्दोनुशासन, अध्याय 3, पृ० 177 8. हेमचन्द्र-अमिधानचिंतामणि, अध्याय 1, पृ. 1