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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
तिलकमंजरी में गणित का संख्यान शास्त्र के नाम से अभिहित किया गया है। रेखा गणित का संकेत भी दिया गया है । रेखा गणित के लिए क्षेत्रगणित शब्द प्रचलित था । रेखा गणित में प्रयुक्त लम्ब, मुज तथा कर्ण शब्दों का उल्लेख है। संगीत
तिलकमंजरी में संगीत सम्बन्धी विषयों एवं शब्दों का बहुलता से प्रयोग हुआ है । इसमें संगीत के लिए गीतशास्त्र तथा संगीतज्ञ के लिए गान्धर्विक उपाध्याय शब्दों का प्रयोग किया गया है । संगीत की गोष्ठी का उल्लेख किया गया है तथा गायक को गाथक कहा गया है ।
'संगीतकम्' शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है । गीत, नृत्य तथा वाद्य इन तीनों को संगीतक कहते हैं
'गीतनृत्यवायत्रयं प्रेक्षणार्थे कृतं संगीतकमुच्यते'
राग शब्द का अनेक बार प्रयोग किया गया है (पृ. 18, 70, 186) विशिष्ट रागों में पंचम तथा गान्धार का उल्लेख किया गया है। पंचम राग को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है । जिसमें नाभि से उठकर वायु वक्ष, हृदय तथा कण्ठ में विचरण करती हुई मध्यम स्थान को प्राप्त होती है उसे पंचम राग कहते हैं ।
1. संख्यानशास्त्रेणेव नवदशालंकृतेन.......
-वही, पृ. 229 2. क्षेत्रगणितमिव लम्बमुजकर्णोद्भासितम्,
-वही, पृ. 24 3. गीतशास्त्रपरिज्ञानदूरारूढगर्वर्गान्धर्विकोपाध्यायः.......
- तिलकमंजरी, पृ. 70 4. (क) ... गीतगोष्ठीस्वरविचारा, -वही, पृ. 41 तथा 184
(ख) वही, पृ. 18, 174 5. आनतितशिखण्डिना दत्तमार्जनमृदंगस्तनितगम्भीरेण स्वरेण संगीतकमिव प्रस्तावयन्""""
-वही, पृ. 34 तथा 268 6. वही, पृ. 70, 57, 42 7. पंचमश्रुतिमिव गीतीनाम्,
-वही, पृ. 159 8. वायुः समुत्थितो नाभेरूरोहत्कण्ठभूर्धसू ।। विचरन् मध्यमस्थानप्राप्त्या पंचम उच्यते ।।
-तिलकमंजरी, पराम टीका, भाग 2, पृ. 172