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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
जानकारी प्राप्त होती है । ये पुस्तकें बड़े बड़े कठोर ताडपत्रों पर कर्णाटक लिपि में लिखी गई थी। इनकी रक्षा के लिए इन्हें दोनों ओर से बांस की पटलियों से प्रावृत्त किया गया था। इनमें काव्य ग्रन्थों की रचना की गई थी।।
उपरोक्त सूचनाओं से ज्ञात होता है कि धनपाल के समय में लेखन कला का समुचित विकास हो चुका था। शस्त्रास्त्र
तिलकमंजरी में विभिन्न प्रसंगों में अठाइस शस्रास्रों का उल्लेख पाया है जो निम्नलिखित हैं
(1) मनुष....तिलकमंजरी में समरकेतु तथा वजायुध के धनुयुद्ध का अत्यन्त विशद वर्णन किया गया है, जो धनपाल के धनुर्वेद सम्बन्धी सूक्ष्म ज्ञान का परिचय प्रदान करता है । धनुर्विद्या अथवा धनुर्वेद का उल्लेख किया गया है। समरकेतु ने धनुर्विद्या का पूर्ण अभ्यास किया था । धनपाल ने श्लेष द्वारा बाण के लिए प्रयुक्त मार्गण, कादम्ब, बाण तथा शिलीमुख शब्दों की व्युत्पत्ति दी है। धनुष चलाने के कार्य को सायक व्यापार, इषु-व्यापार कहा गया है। समरकेतु इतनी तीव्रता से बाण चला रहा था कि उसका दाहिना हाथ, एक साथ तूणीर पर गुथां हुआ, धनुष की डोरी पर लिखित, पुंखों पर जड़ा हुआ तथा कर्णान्त पर अवतसित सा जान पड़ता था।' धनुर्धर के प्रयत्न लाघव की इस क्रिया को खुरली कहा जाता है । तिलकमंजरी में धनुर्वेद सम्बन्धी निम्नलिखित जानकारी मिलती है:
धनुष के लिए प्रयुक्त शब्द(1) सायक-88, 89, 12, 92, 113, 104, 5, 92
1. उभयतो वेणुकर्परावरणकृतरक्षेष्वसंकीर्णखरताडपर्णकोत्कीर्णकर्णाटादिलिपषु पुस्तकेषु विरलमवलोक्यामानसंस्कृतानुविद्धस्वदेशभाषानिबद्धकाव्यप्रबन्धानि
वही, पृ 134 2. तिलकमंजरी, पृ. 89-90 3. (क) भ्रूविभ्रमैमन्मथमिव धनुर्वेद शिक्षयन्ती, -वही, पृ. 159
(ख) वही, पृ. 90 4. अभ्यस्तनिखधनुर्वेदम्
-वही, पृ. 114 5. वही, पृ. 89 6. वही, पृ. 88-99 7. अतिवेगव्याप्तोऽस्य तत्र क्षणे प्रोत इव तूणीमुखेषु, लिखित इव मौर्याम्,
उत्कीर्ण इव पुखेष, अवतंसित इव श्रवणान्ते तुल्यकालमलक्ष्यत् । वही, पृ. 90