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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
विभिन्न निझरों प्रपातों एवं शून्य पायतनों में अपना-अपना निवास बना लिया था। उन विभिन्न तपों व व्रतों का नीचे विवरण दिया जाता है
पाहारत्याग- कुछ विद्याधरों ने आहार का त्याग कर दिया था। हर्षचरित में भी 22 सम्प्रदायों के वर्णन में निराहार रहकर प्रायोपवेशन द्वारा शरीर त्यागने वाले अथवा लम्बे-लम्बे उपवास करने वाले जैन साधुओं का संकेत दिया गया है । अतः यहां निश्चित रूप से जैन साधुओं की ओर संकेत है ।
अन्नत्याग-कुछ विद्याधर अन्नत्याग कर केवल फलमूल का आहार लेने लगे (फलमूलाहारः पृ. 236)
पंचाग्नि-तापन- कुछ विद्याधर पंचाग्नि ताप के अनुष्ठान में लग गये (पंचतपः साधनविधानसंलग्नः पृ. 236) कालिदास ने कुमारसम्भव में पार्वती की पंचाग्नि तपस्या का वर्णन किया है। इसमें अपने चारों ओर अग्नि जलाकर पंचम अग्नि सूर्य की ओर एकटक देखा जाता था। हर्षचरित में भी पंचाग्नि साधना का संकेत दिया गया है ।
उदकवास-कुछ विद्याघर आकण्ठ जल में डूबकर तपस्या कर रहे थे (आकण्ठमुदकमग्नश्च)। शीत ऋतु की रात्रियों में जल में खड़े होकर तपस्या करने वाली पार्वती का कालिदास ने वर्णन किया है ।
धूमपान- कुछ विद्याधर नीचे की ओर मुंह करके धूमपान कर रहे थे (प्रारब्धधूमपानाषोमुखश्च, पृ 236)
सूर्य की ओर टकटकी लगाकर देखना- कुछ विद्याधर ऊपर की ओर मुख करके सूर्य के बिम्ब को टकटकी लगाकर देख रहे थे । सूर्य की ओर एकटक देखती हुई पार्वती का कुमारसम्भव में वर्णन किया गया है ।।
1. एकंकधार्मिकाध्युषितनिर्झरप्रपातासन्नशून्यसिद्धायतनः....
-तिलकमंजरी, पृ. 235 2. फलमूलप्रायाहारः,
वही, पृ. 236 3. अग्रवाल, वासुदेवशरण हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 108 4. कालिदास, कुमारसम्भवत् 5/20
अग्रवाल, वासुदेवशरण; हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 108 6. कालिदास, कुमारसम्भवत् 5/26 7. ... विजित्य नेत्रप्रतिघातिनी प्रभामनन्यदृष्टिः सवित्तारमैक्षत् ।
कालिदास कुमारसम्भवम्, पृ. 5/20