Book Title: Tilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Pushpa Gupta
Publisher: Publication Scheme

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Page 257
________________ उपसंहार 247 से प्रसूत है। यह काव्य संस्कृत गद्य-काव्य के अल्प-शेष दुर्लभ ग्रन्थों के अन्तर्गत होने से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । यह ग्रंथ प्रति प्रांजल, ओजस्वी, भावपूर्ण भाषा तथा छोटे-छोटे समासों से युक्त ललित वेदी रीति में रचा गया है। प्रसंगानुकूल पांचाली व गोडी रीति का भी प्रयोग किया गया है। मनोहर प्रसंगानुकूल प्रलंकार-योजना से इसके कलेवर का शृंगार किया गया है। सर्वत्र मनोहर अनुप्रास यमकादि शब्दालंकारों के साथ उपमा, उत्प्रेक्षादि अर्थालंकारों का उचित समन्वय इसकी विशिष्टता है । प्रमुख रस शृंगार होते हुए सभी समस्त नव-रसों का परिपाक इसमें परिलक्षित होता है । (6) तत्कालीन सांस्कृतिक दृष्टि से तिलकमंजरी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। दशम-एकादश शती की संस्कृति के अध्ययन हेतु तिलकमंजरी कोष का काम करती है। इसमें तत्कालीन राजाओं के मनोविनोद, वस्त्र तथा वेशभूषा, सभी प्रकार के आभूषण तथा प्रसाधनों का विस्तृत वर्णन हैं। (7) तिलकमंजरी में तत्कालीन सामाजिक व धार्मिक स्थिति प्रतिबिम्बित होती है। तत्कालीन समाज में वर्ण तथा आश्रम की विधिवत् व्यवस्था की जातो थी, संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी, स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक थी। कृषि व व्यापार बहुत उन्नतावस्था में थे। द्वीपान्तरों तक समुद्र से व्यापार किया जाता था। (8) तिलकमंजरी से जैन धर्म के आचार-विचार तथा सिद्धान्तों की विस्तृत जानकारी मिलती है। जैन धर्म के अतिरिक्त, शैव तथा वैष्णवादि धर्मों की स्थिति के भी उल्लेख मिलते हैं। - - -

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