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तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति
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जप-कुछ विद्याधर मन्त्रों के पाप, में संलग्न श्रे पूडच पृ. 236 ।
मौन-व्रत- कुछ विद्याधरों ने मौन व्रत धारण कर लिया था (पांचयमः पृ. 236) यहाँ निश्चित रूप से जैन साधुओं का संकेत है। कल्पसूत्र में माम्नाय के अनुसार तत्व को जानकर उसी का एक मात्र ध्यान करने कारोकोवाचंयम कहा गया है , न कि पशु की तरह मौन रहने वाले को।।
. . कन्द-मूल त्याग- कुछ विद्याधरों ने कन्द-मूल तोड़ना त्याग दिया था। (श्चिदकन्दमूलोद्धारिभि:236) यहाँ भी जैन धार्मिक साधुओं का ही संकेत है।
बलावणाहन- कुछ विद्याधरों ने वायु तथा आतप दूषित जल में समाधि ले ली थी (अवगाढवातातपोपहतवारिभिः)
तापस वेष धारण - कुछ विद्याधरों ने अजिन तथा जटादि रूप तपस्वी वेष धारण कर लिया था। इस प्रकार के तपस्वी नैष्ठिक धर्म को मानने वाले तथा वर्णी कहलाते थे । हर्षचरित तथा कादम्बरी में भी इनका उल्लेख किया गया है ।
हिसा-त्याग- कुछ विद्याधर हाथ में धनुष लेकर भी जीवों की हत्या नहीं कर रहे थे (कश्चिदुद्दण्डकोदण्डपाणिभिः प्राणिविरासनोपरतःपृ. 236)
कुछ विद्याधर प्रेयसियों के निकट रहने पर भी संभोग-सुख से विरत थे (अन्तिकस्वप्रेयसीभिः संभोगसुखपराङ्गमख:- 236) । इसे प्रसिधाराव्रत कहा जाता है।
चान्द्रायण-व्रत- मलयसुन्दरी समरकेतु से समागम की प्रतीक्षा में चन्द्रायणादि व्रतों द्वारा अपने शरीर को क्षीणतर बना देती है । वह शाक, फल मूलादि वन्याहार ही ग्रहण करती है, वह भी अतिथियों का उच्छिष्ट मात्र ही।
* इस प्रकार तिलकमंजरी में 14 प्रकार के विभिन्न तपों तथा व्रतों का उल्लेख आया है। धार्मिक व सामाजिक मान्यताएं, अंधविश्वास, शकुन-अपशकुन
शकुन- भारतीय समाज में यह मान्यता है कि प्रकृति आगामी शुभ अथवा
1. योऽवगम्य यथाम्नायं तत्त्वं तत्त्वकभावनः ।
वाचयंमः सः विज्ञेयो न मौनी पशुवन्नरः ।। -कल्पसूत्र 44/867 2. विघृताजिनजटाकलापस्तापसाकल्प कलयद्भिः , तिलकमंजरी, पृ. 236 3. समारब्धोपवासकृच्छ्चान्द्रायणादिविविधव्रतविधि....शाकफलमूलादिभिः सादरमुपरचन्ती तदुपन तशेषेण वन्यान्नेन विरलविरलात्मदेह वर्तयन्ती ।
-वही, पृ. 345