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तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति
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रूचक कुण्डल, शिखामणि, भस्म और यज्ञोपवीत इन छः मुद्रामों तथा कपाल और खटवांक इन दो उपमुद्राओं का विशेषज्ञ होता है। घातुवादी
तिलकमंजरी में घातुवादियों का दो स्थानों पर उल्लेख माया है ।। पारे से सोना बनाने की क्रिया को घातुवाद कहा जाता था। इस विद्या के ज्ञाताको धातुवादिक कहते थे । वताढ्य पर्वत की अटवी के वर्णन में इनके द्वारा पोषषियों के विभिन्न प्रयोग एवं सिद्धियों का उल्लेख किया गया है। हर्षचरित में भी कारन्धमी या धातुवादी लोगों का वर्णन आया है । ये लोग नागार्जुन को अपना गुरू मानकर औषधियों से होने वाली अनेक प्रकार की सिद्धियों और चमत्कारों को दर्शन का रूप दे रहे थे । बाद में यही मत रसेन्द्र दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हुआ । बाण के मित्रों में विहंगम नामक धातुवादी था । कादम्बरी में अनाड़ी धातुबादिकों का उल्लेख है, जिन्हें कुवादिक कहा गया हैं धनपाल ने धातुवादियों का शैवों से सम्बन्धित होना सूचित किया है। तिलकमंजरी में धातुवादियों के लिए भी वातिक शब्द का प्रयोग हुआ है । वातिकों द्वारा पत्थरों के कूटने मे निर्मित अकृत्रिम शिवलिंगों का वर्णन आया है। इसी प्रकार युद्ध के प्रसंग में श्लेष द्वारा पारे को नष्ट करने वाले वातिकों का उल्लेख किया गया है । डा. हान्दीकी ने भी इसी तथ्य की पुष्टि की है कि कापालिक मन्त्रविद्या धातुवाद तथा रसायनादि में सिद्धि प्राप्त करते थे पर यह अनिवार्य नहीं था कि
1. कर्णिकारूचक चव कुण्डलं च शिखामणिम । भस्म यज्ञोपवीतं चमुद्राषट्कं
प्रचक्षते । कपालमथ खट्वांगमुपमुदे प्रकीर्तिते । .. सोमदेव यशस्तिलक उद्घत Ibid. 356 2. (क) रससिद्विवदग्ध्यधातुवादिकस्य, तिलकमंजरी पृ .22 (ख) स्वर्णाचूणविकीर्णभस्म पुंजकव्यज्यमाननरेन्दधातुवादक्रियः....... वही
पृ. 235 3. उद्धृत डा. वासुदेवशरण अग्रवाल हर्षचरित ; एक सांस्कृतिक अध्ययन.
पृ. 196 4. वही. पृ. 30 5. वही, कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 235 6. तिलकमंजरी, पृ. 235 .7 कचित् वातिका इव सूतमारणोद्यताः,
वही, पृ 89