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तिलकमंजरी में वर्णित सामाजिक व धार्मिक स्थिति
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शेवसम्प्रदाय
'तिलकमंजरी में एक श्लेषोक्ति में शैव सम्प्रदाय का उल्लेख है, जिसके दक्षिण तथा वाम दो मार्ग कहे गये हैं। यशस्तिलक में भी शव सिद्धान्त के दो मार्ग कहे गये हैं। दक्षिण मार्ग सामान्य जन के लिये था तथा वाम मार्म, भोग तथा मोक्ष प्रदान कराने वाला तथा तांत्रिकों से सम्बन्धित था । धनपाल के समय में कदाचित वाम मार्ग अधिक प्रचलित हो गया था, अतः उसने प्रेत साधना करने वाले, दक्षिण से वाम मार्ग में आकर परम शिव की साधना करने वाले शवों का उल्लेख किया है। प्रेत साधना का एक अन्य स्थल पर भी उल्लेख है। शैव सम्प्रदाय के चार मत ग्यारहवीं सदी में प्रचलित थे- (1) शैव सिद्धान्त को मानने वाले (2) पाशुपत लकुलीश (3) कापालिक तथा (4) कालामुख । ...
धनपाल ने कराल क्रियाए करने वाले कालामुख तथा कापालिक शवों की भयंकर साधनाओं का उल्लेख किया है । वेताल के वर्णन में इनका उल्लेख है। वेताल ने मन्त्र साधकों की मुण्डमाला पहनी थी। वह कपाल में से रक्तपान कर रहा था। वह वेताल साधना करने वाले पुरुष के मांस को काट-काट कर खा रहा था। उसके ललाट पर रक्त का पंचागुल चिन्ह अंकि तथा । इसी प्रकार की एक अन्य भयंकर साधना असुर-विवर साधना का धनपाल ने अनेक प्रसंगों में
1. प्रतिपन्नदक्षिणवाममार्गागमः परं शिवं शंसदिभरभिप्रेत साधकः शैवेरिव....
तिलकमंजरी, पृ. 198 99 2. · भगवतो हि भर्गस्यसकल जगदनुग्रहसर्गो दक्षिणो वामश्चः
___ सोमदेव, यशस्तिलक, पृ. 251 3. (क) तत्रलोकसंचरणार्थ दक्षिणो मार्गः
वही पृ. 206 (ख) भुक्तिमुक्तिप्रदस्तु वाममार्गः परमार्थ वही.पृ. 208 4. तिलकमंजरी, पृ. 198-99
कदाचित् प्रेतसाधकस्येव नक्तचराध्यासिताषुभूमिषु .. वही, पृ. 201 6. यामुनाचार्य, आगमप्रामाण्य
उद्धृत Handiqui K.K.
Yasastilaka and Indian Culture, p. 234 7. अचिरखण्डितं मन्त्रसाधकमुण्डं........गलावलम्बित्, बिभ्राणम् वही, 47 8. वेताल साधकस्य साघितमुत्सर्पता....कीकशोपदंशम्.... तिलकमंजरी,पृ. 47 9. आभोगिना ललाटस्थलेन........असृक्पंचांगुलम् ........ वही, पृ. 48