Book Title: Tilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Pushpa Gupta
Publisher: Publication Scheme

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Page 244
________________ तिलकमंजरी एक सांस्कृतिक अध्ययन जाने का उल्लेख मिलता है । यह यात्रोत्सव महावीर के निर्वाण दिवस से प्रारंभ कर कार्तिक मास की पौर्णमासी को समाप्त होता था । " 234 ऋषभदेव व महावीर के अतिरिक्त अजितनाथादि अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियों का भी उल्लेख आया है । # जैन मंदिर - तिलकमंजरी में अनेक स्थलों पर जैन मन्दिरों का वर्णन है, जिनमें तीन मन्दिर प्रमुख हैं । (1) अयोध्या के समीप शक्रावतार नामक आदिनाथ के मन्दिर का वर्णन किया गया है । यह आदितीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था । (2) समरकेतु द्वारा हरिवाहन - अन्वेषण के प्रसंग में ऋषभदेव के ही दूसरे मन्दिर का सजीव वर्णन किया गया है । इसी मन्दिर में हरिवाहन ने पद्मासन लगाते हुए मलयसुन्दरी को ऋषभदेव की प्रतिमा के सम्मुख बैठे देखा था 18 (3) तीसरे स्थल पर रत्नकूट पर्वतस्थ महावीर के मन्दिर का वर्णन है, जहां समरकेतु तथा मलयसुन्दरी का प्रथम समागम हुआ था । " इनके अतिरिक्त समवसरण, परिव्रज्या, गणधर, केवली, जीवादि अनेक जैन धर्म से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया गया है । वैष्णव सम्प्रदाय एक परिसंख्या अलंकार के प्रसंग में वैष्णव सम्प्रदाय का उल्लेख किया गया है कि वैष्णवों का ही कृष्ण के मार्ग में प्रवेश था। इस उल्लेख के अतिरिक्त वैष्णवों के आचार-विचार, ग्रन्थों, पूजादि सम्बन्धी कोई जानकारी नहीं मिलती अतः तत्कालीन समय में वैष्णव सम्प्रदाय की स्थिति के विषय में तिलकमंजरी से विशेष सूचना नहीं मिलती । 1. वही, पृ. 157, 244, 265, 275 2... भगवतो महावीरजिनवरस्य निर्वाण दिवसात्प्रभृति... निसीथे मया दृष्टा ........ 3. जिनानामजितादीनामप्रतिमशोभाः प्रतिमाः 4. आदितीर्थतया पृथिव्यां प्रथितमतितुङ्गशिखरतोरण सिद्धायतनमगमत् । 5. वही, पृ. 216-17 6. वही, पृ. 255 7. वही, पृ. 275 8. वैष्णवानां कृष्णवर्त्मनि प्रवेशः कार्तिकमास पौर्णमासीवही, पृ. 344 - वही, पृ. 226 प्राकारंशक्रावतारं नाम -तिलकमंजरी, पृ. 35 ....... वही, पृ. 12

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